Posts

प्रकृति ईश्वर का अनुपम उपहार

Image
https://www.blogger.com/dashboard/reading प्रकृति हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनुपम उपहार है। स्वच्छ एवं सुरक्षित पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्राचीन समय में मनुष्य प्रकृति के करीब था इसलिए स्वस्थ और प्रसन्न रहता था। आज के परिवेश में देखा जाए तो मनुष्य   विलासिता पूर्ण जीवन जीने के लिये प्रकृति से दूर होता चला गया और कृत्रिम वातावरण में घिर गया फलस्वरूप तमाम व्याधियों को आमंत्रित कर लिया। प्रकृति से हमारा कितना प्रगाढ़ सम्बन्ध रहा है इस बात को सहजता से ही समझा जा सकता है। प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज प्रकृति की पूजा करते आये है । घर में तुलसी लगाना, पीपल, बरगद, आंवला जैसे वृक्षों की पूजा करना जो कि प्राणवायु ऑक्सीजन का प्रचुर मात्रा में उत्सर्जन करते हैं। प्राण वायु ही नहीं अपितु असाध्य रोगों को ठीक करने में पौधों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है।हमने गाय को माता का दर्जा दिया तो वही नदियों में गंगा और यमुना को मां कहा और उनकी आराधना की। हम सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी की भी पूजा करते आ रहे हैं। यह हमारा प्रकृति प्रेम ही था । आरामदायक और शान शौकत

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह एक विचारधारा का नाम

Image
चौधरी चरण सिंह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं खाँटी किसान नेता केवल नाम नहीं है वह एक विचारधारा हैं जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितना पहले थे।  चरण सिंह का जन्म एक जाट परिवार मे हुआ था। बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23 दिसम्बर,1902 को आपका जन्म हुआ। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था। चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द के पास भूपगढी आकर बस गये थे। यहीं के परिवेश में चौधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चौधरी चरण सिंह ने ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। चरण सिंह की राजनीति में कोई दुराव या कोई कपट नह

क्रूर कोरोना ने किया अनाथ, छीना माता पिता का साया

Image
किसी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कोरोना महामारी की विभीषिका इतनी दर्दनाक होगी जहां परिवार के परिवार खत्म हो जाएंगे।इस महामारी ने ना जाने कितने लोगों से उनके अपने प्रियजनों को छीन लिया वो बेबस और लाचार छटपटाते रहे लेकिन कुछ ना कर सके। उन बच्चों के बारे में सोचकर कलेजा मुंह को आता है जिन्होंने इस त्रासदी में अपने माता पिता दोनों को खो दिया है। जिस घर में कभी खुशियों की बहार थी आज वहां पर मातम है , सन्नाटा पसरा हुआ है। सिस्टम के नाकारापन से जिन्हें बचाया जा सकता था हम उन्हें भी ना बचा पाए। जिन बच्चों के माता पिता असमय काल के गाल में समा गए कल्पना करने से ही मन सिहर उठता है।   भारत सरकार ने राज्यों से मिले आंकड़ों के आधार पर बताया है कि 1 अप्रैल 2021 से 25 मई 2021 तक  कोरोना महामारी की दूसरी लहर में  577 बच्चे अनाथ हो गये हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यों से मिली रिपोर्ट का हवाला देते हुए कि सरकार इन बच्चों के संरक्षण एवं देखरेख के लिए तैयार है।अगर ऐसे बच्चों को कॉउंसलिंग की जरूरत पड़ती है तो राष्ट्रीय मानसिक जांच एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थ

इजरायल और फिलिस्तीन के खूनी संघर्ष की कहानी

Image
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच पिछले 11 दिनों से संघर्ष चल रहा था। दोनों ओर से सैकड़ों हवाई हमले और भीषण गोलाबारी हुई हालांकि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच दोनों संघर्ष विराम पर राजी हो गए जिससे दुनियां ने राहत की सांस ली। संघर्ष के दौरान बड़ी संख्या में बेगुनाह लोग और मासूम बच्चे मारे गए। जहां सभी देश कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहे हैं और लाखों लोग महामारी से असमय काल के गाल में समा गए वहीं इजरायल की विस्तारवादी नीति व दमनकारी नीति के कारण फिलिस्तीन व इजरायल में भीषण खूनी संघर्ष शुरू हो गया। इस संघर्ष में फिलिस्तीन के 232 लोग मारे गए जिसमें 65 बच्चे भी थे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अपने स्वार्थ के कारण उन मासूमों को भी मौत के घाट उतार दिया गया जिन्होंने अभी दुनिया को सही से देखा तक ना था। इस संघर्ष में फिलिस्तीन के 1900 लोग घायल हुए और एक लाख बीस हजार लोग बेघर हुए वहीं इजरायल के 12 लोगों की जान चली गई। भारत हमेशा से फिलिस्तीन का समर्थक रहा है लेकिन वर्तमान मोदी सरकार के रिश्ते इजरायल से भी बेहतर हुए है इसी का कारण था कि खुलकर फिलिस्तीन का पक्ष लेने वाले भारत ने तटस्थ प्रतिक्रिया

नहीं रहे पर्यावरण चेतना के प्रखरतम संवाहक

Image
पर्यावरण चेतना के प्रखरतम संवाहक प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने 21 मई 2021 को अंतिम सांस ली। सुंदर लाल बहुगणा कोरोना से संक्रमित हो गए थे जिन्हें ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। चिपको आंदोलन के प्रणेता एवं विश्व में वृक्ष मित्र के नाम से मशहूर बहुगुणा का निधन देश के लिए अपूर्णीय क्षति है। ऐसी सख्शियत सदियों में एक बार जन्म लेती है। जल जंगल जमीन को आजीवन अपनी प्राथमिकता में रखने वाले और वंचितों को उनका अधिकार दिलाने के लिए उनके प्रयास को सदैव याद रखा जाएगा।  सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को देवभूमि उत्तराखंड के सिलयारा नामक स्थान पर हुआ था । प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह लाहौर चले गए जहां पर उन्होंने बीए की शिक्षा पूर्ण की। सन 1949 में वह मीरा बेन व ठक्कर बाप्पा के संपर्क में आये और दलित विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए। उन्होंने दलित विद्यार्थियों के लिए बाप्पा होस्टल की स्थापना की साथ ही दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किया। प्रदूषण से होने वाली तबाही की बात तो

मेरी माँ

Image
उसको नहीं देखा हमने कभी,हमें उसकी जरूरत क्या होगी। मां तेरी सूरत के आगे भगवान की मूरत क्या होगी।। मां शब्द ऐसा है जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता है। हम कह सकते हैं कि मां शब्द से ही सम्पूर्ण ब्रम्हांड परिभाषित है। बच्चा जब मां के गर्भ में होता है तो माँ अपनी अस्थि, मज्जा, रक्त और श्वांस देकर उसको जीवन प्रदान करती है। माँ तमाम कष्टों को सहकर अपने बच्चे को जन्म देती है, बच्चे की खुशी में उसे लगता है जैसे संसार की सारी खुशियां उसके हिस्से में आ गयी हों।   उन सर्द रातों में अपने बच्चे को सूखे में सुलाकर खुद गीले में सो जाती , ऐसी होती है माँ। बच्चे को थोड़ी सी तकलीफ होती तो माँ रात जागकर काट देती ,सुबह का इंतजार करती और डॉक्टर के पास दिखाने के लिए दौड़ती। दवा दिलाती, दुआ भी देती और जब लगता मेरे लाल को किसी की नजर तो नहीं लग गयी , मन को संतुष्टि नहीं होती तो टोना टोटका कर नजर भी उतारती। संसार में सभी ऋणों से मुक्त हुआ जा सकता है लेकिन मां का ऋण कभी नही चुकाया जा सकता।   मां उंगली पकड़कर चलना सिखाती है , जब हमारे कदम लड़खड़ाते हैं तो वो सहारा देकर हमें गिरने से बचा लेती है।" प

आतंकियों और पत्थरबाजों की हमदर्द महबूबा

जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती का आतंकियों और पत्थरबाजों के प्रति प्रेम फिर उजागर हो गया है , जब उन्होंने भाजपा की केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि रमजान के महीने में सेना एकतरफा युद्धविराम की घोषणा करे। उन्होंने कहा कि सेना के लगातार एनकाउन्टर, क्रैकडाउन और सर्च ऑपरेशन से आम आदमी को परेशानी हो रही है।   महबूबा मुफ़्ती ने वाजपेयी सरकार का हवाला देते हुए कहा कि 2000 में अटल विहारी वाजपेयी ने एकतरफा यद्धविराम की घोषणा की थी। उन्होंने इसी बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 15 अगस्त को लाल किला की प्राचीर से दिया हुआ भाषण भी याद दिलाया जिसमें उन्होंने कश्मीरियों को गले लगाने की बात कही थी। सवाल ये है कि रमजान के बहाने और आम नागरिकों की परेशानी का हवाला देकर महबूबा मुफ़्ती आतंकियों और पत्थरबाजों को बचाने की कोशिश तो नहीं कर रहीं है। कुछ दिन पहले ही महबूबा ने आतंकियों और पत्थरबाजों को अपना बच्चा कहा था। जब इनकी सोच ही आतंकियों की सोच से मेल खाती है तो जम्मू कश्मीर में हालात कैसे सुधार सकते हैं। रमजान जैसे पाक महीने में क्या आतंकी सेना और आम नागरिकों पर् हमला करना छोड़ देते हैं ?,