क्रूर कोरोना ने किया अनाथ, छीना माता पिता का साया

किसी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कोरोना महामारी की विभीषिका इतनी दर्दनाक होगी जहां परिवार के परिवार खत्म हो जाएंगे।इस महामारी ने ना जाने कितने लोगों से उनके अपने प्रियजनों को छीन लिया वो बेबस और लाचार छटपटाते रहे लेकिन कुछ ना कर सके। उन बच्चों के बारे में सोचकर कलेजा मुंह को आता है जिन्होंने इस त्रासदी में अपने माता पिता दोनों को खो दिया है। जिस घर में कभी खुशियों की बहार थी आज वहां पर मातम है , सन्नाटा पसरा हुआ है। सिस्टम के नाकारापन से जिन्हें बचाया जा सकता था हम उन्हें भी ना बचा पाए। जिन बच्चों के माता पिता असमय काल के गाल में समा गए कल्पना करने से ही मन सिहर उठता है। 
 भारत सरकार ने राज्यों से मिले आंकड़ों के आधार पर बताया है कि 1 अप्रैल 2021 से 25 मई 2021 तक  कोरोना महामारी की दूसरी लहर में  577 बच्चे अनाथ हो गये हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यों से मिली रिपोर्ट का हवाला देते हुए कि सरकार इन बच्चों के संरक्षण एवं देखरेख के लिए तैयार है।अगर ऐसे बच्चों को कॉउंसलिंग की जरूरत पड़ती है तो राष्ट्रीय मानसिक जांच एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान की टीम तैयार है। ऐसे बच्चों की मदद के लिए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय राज्य सरकारों के संपर्क में है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश, पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, दिल्ली जैसे राज्यों ने अनाथ हुए बच्चों की जिम्मेदारी उठाने का ऐलान किया है। देखने वाली बात ये होगी सरकारी ऐलान कहाँ तक इन बच्चों की मदद करने में कामयाब होगी। बहुत से एनजीओ भी मदद को आगे आ रहे हैं। 
बहुत से लोग बच्चों को गोद लेना चाहते हैं लेकिन इसके लिए बाकायदा गाइडलाइंस जारी की गई है। अगर आपको किसी परिचित, नर्सिंग होम, अस्पताल या एनजीओ से आपको सूचना मिलती है इसके आधार पर आप बच्चे को गोद नहीं ले सकते है। इसके लिए निर्धारित कानूनी प्रक्रिया को अपनाकर बच्चे को गोद लिया जा सकता है। राज्य सरकारों द्वारा अधिकृत अडॉप्शन एजेंसियों द्वारा भी ये प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।  भारत में CARA( Central Adoption Resource Authority) के जरिये गाइडलाइन दी गई है पहले वेबसाइट WWW.cara.nic.in पर जाकर पूरी गाइडलाइन पढ़ें साथ ही प्रक्रिया को अपनाते हुए तय रजिस्ट्रेशन फीस जमा की जाती है इनके अलावा कोई भुगतान नहीं करना होता है। गोद लेने के लिए कई कड़े नियम बनाये गए हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है। जैसे कि भावी दत्तक माता पिता का शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से स्थिर और आर्थिक रूप से सक्षम होना जरूरी है। दूसरा विवाहित जोड़े के मामले में गोद लेने के लिए दोनों पति पत्नी की सहमति अनिवार्य है सिंगल महिला किसी जेंडर के बच्चे को गोद ले सकती है लेकिन एक सिंगल पुरुष बेटी को गोद लेने के योग्य नहीं होगा। नियम ये भी है कि किसी दंपति को तब तक बच्चा गोद नहीं दिया जा सकता जब तक उनका दो वर्ष का स्थिर वैवाहिक संबंध ना हो। बच्चे और भावी दत्तक माता पिता की आयु के बीच कम से कम पच्चीस वर्ष का न्यूनतम अंतर अवश्य हो , सौतेले माता पिता या रिश्तेदार गोद लेते हैं तो आयु का नियम लागू नहीं होगा। जिनके तीन से चार बच्चे हैं उन्हें किसी भी हालत में बच्चा गोद नहीं दिया जाएगा।
बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया जटिल जरूर है लेकिन इससे बहुत से अनाथ बच्चों को सहारा मिल सकता है। राष्ट्रीय बाल आयोग द्वारा चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 पर महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों की सूचना देने की अपील की है साथ ही स्थानीय पुलिस, बाल अधिकार आयोग पर भी सूचना दी जा सकती है। मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार अनाथ बच्चों के पुनर्वास के लिए जिला बाल कल्याण समिति के सामने चौबीस घंटे के अंदर पेश किया जाएगा। समिति बच्चे की तत्काल आवश्यकता का पता लगायेगी और बच्चे के पुनर्वास के लिए उचित आदेश पारित करेगी या तो बच्चों को देखभाल करने वालों को सौंप दिया जाएगा या फिर मामले के हिसाब से उसे संस्थागत या गैर संस्थागत देखभाल में रखने का आदेश देगी। संभव होगा तो बच्चों को पारिवारिक और सामुदायिक माहौल में रखने का प्रयास किया जाएगा।बच्चों के हितों की रक्षा किशोर अधिनियम के तहत की जाएगी।
इस महामारी इतने गहरे जख्म दिए है जिनका पूरे जीवन में भरना नामुमकिन है। उत्तरप्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा का एक परिवार की खुशियां मातम में बदल गई जब आठ वर्षीय बेटा और दस वर्षीय बेटी को कोरोना ने अनाथ बना दिया। दोनों के माता पिता कोरोना की भेंट चढ़ गए। उत्तरप्रदेश की बलिया जिले की बेरिया तहसील क्षेत्र के दलन छपरा गाँव में एक ही परिवार के चार बच्चों को अनाथ कर दिया। पिता कैंसर की बीमारी से तीन साल पहले ही चल बसे थे और अब कोरोना ने मां का आँचल भी उनके सर से छीन लिया। तीन बहनें काजल, रूबी, रेनू हैं और एक भाई अंकुश है। बहनों का कहना है कि अब तो जिंदगी राम भरोसे ही है उन्हें दूसरों की खेती में मेहनत मजदूरी कर गुजर बसर करनी होगी।  महारष्ट्र के सांगली जिले की शिराला तहसील के शिरशी गांव में एक ही परिवार को महामारी ने तबाह कर दिया। तेरह घण्टे के अंदर तीन लोगों की मौत हो गई सहदेव झिगूर (75) उनकी पत्नी सुशीला झिमूर और बेटा सचिन जो कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर था असमय काल के गाल में समा गए। उत्तरप्रदेश के बरेली में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ भारतेंदु शर्मा और उनकी पत्नी अपनी बेटी कनक की विवाह की तैयारियों में लगे थे घर में मंगल गीत गाये जा रहे थे लेकिन किसे पता था कि ये खुशियां पल भर की है। कोरोना से संक्रमित होने पर पहले कनक की मां और तीन दिन बाद उनके पिता की मौत हो गई। जहां बेटी की डोली उतनी थी वहां पर मां बाप की अर्थियां उठ गईं। खुशियां मातम में बदल गईं ऐसे ना जाने कितने परिवार हैं जिनकी खुशियों को ना जाने किसकी नजर लग गई।
माँ की ममता और पिता का प्यार अब उन्हें दोबारा कभी नहीं मिल सकेगा। उनसे ज्यादा और कौन दुर्भाग्यशाली होगा जिनके ऊपर से माता पिता का साया उठ गया है। सरकार और स्वयं सेवी संस्थाएं उनके पुनर्वास के साथ यह भी सुनिश्चित करें कि उनके अधिकारों का संरक्षण हो। जिन्होंने अपने माता पिता को खोया है ऐसे बच्चे निश्चित रूप से मानसिक पीड़ा से गुजर रहे होंगे ऐसे में उन्हें सहारे और प्यार की जरूरत होगी ऐसे बच्चों की कॉउंसलिंग कराकर उनकी मानसिक स्थित को सुधारा जा सकता है। बच्चों के भरण पोषण के साथ उनकी शिक्षा सही ढंग से हो इसके लिए लगातार निगरानी रखने की आवश्यकता होगी। 
सादर
राघवेंद्र दुबे

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