प्रकृति ईश्वर का अनुपम उपहार

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प्रकृति हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनुपम उपहार है। स्वच्छ एवं सुरक्षित पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्राचीन समय में मनुष्य प्रकृति के करीब था इसलिए स्वस्थ और प्रसन्न रहता था। आज के परिवेश में देखा जाए तो मनुष्य   विलासिता पूर्ण जीवन जीने के लिये प्रकृति से दूर होता चला गया और कृत्रिम वातावरण में घिर गया फलस्वरूप तमाम व्याधियों को आमंत्रित कर लिया। प्रकृति से हमारा कितना प्रगाढ़ सम्बन्ध रहा है इस बात को सहजता से ही समझा जा सकता है। प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज प्रकृति की पूजा करते आये है । घर में तुलसी लगाना, पीपल, बरगद, आंवला जैसे वृक्षों की पूजा करना जो कि प्राणवायु ऑक्सीजन का प्रचुर मात्रा में उत्सर्जन करते हैं। प्राण वायु ही नहीं अपितु असाध्य रोगों को ठीक करने में पौधों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है।हमने गाय को माता का दर्जा दिया तो वही नदियों में गंगा और यमुना को मां कहा और उनकी आराधना की। हम सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी की भी पूजा करते आ रहे हैं। यह हमारा प्रकृति प्रेम ही था । आरामदायक और शान शौकत की जिंदगी जीने के लिए हमने पेड़ों को काटकर उनकी जगह ऊंची ऊंची इमारते बनाकर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए। हमने स्वयं ही अपने चारों ओर एक कृत्रिम वातावरण तैयार कर दिया चाहे वह वातानुकूलित कमरे हों, कारें हो। जीवन जीने के लिए जो भी आवश्यक है वह सब कुछ हमें प्रकृति प्रदान करती है। हमारा भी कर्तव्य बन जाता कि हम पर्यावरण को संरक्षित करने में अपना सहयोग करें।
सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानव पर्यावरण विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा का आयोजन स्टॉकहोम स्वीडन में किया गया जिसमें 119 देशों ने भाग लिया।  संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता के लिए 5 जून 1974 को पहला पर्यावरण दिवस मनाया । तब से लगातार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की थीम पारिस्थितिकी तंत्र बहाली है। अबकी बार पाकिस्तान इसकी मेजबानी करेगा। बांग्लादेश सबसे अधिक दस बार विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी कर चुका है। भारत ने 2011 और 2018 में मेजबानी की थी। 
हमारे चारों ओर घेरे हुए जो आवरण है वही पर्यावरण है जिसकी हिफाजत करना हर एक नागरिक का कर्तव्य है। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण ही आज परिस्थितियां प्रतिकूल हो गई हैं। तन को जला डालने वाली भीषण गर्मी, भीषण ठंड, सूखा, तूफान, बाढ़ , जंगलों की आग यह सब प्रकृति के असंतुलन के कारण पैदा हुई परिस्थितियां हैं जिसका कारण हम सभी मनुष्य हैं। लगातार बढ़ती जनसंख्या भी पर्यावरण को प्रूषित करने में अपनी अहम भूमिका निभा रही है। विशाल जनसंख्या के परिणामस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। बहुमंजिली इमारतों को बनाते समय बेसमेंट की खुदाई कर लाखों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। औद्योगिक अपशिष्टों का सही से निस्तारण ना होने के कारण हमारा भूमिगत जल भी दूषित हो गया है। धनाढ्य वर्ग दूषित जल की जगह शोधित मिनरल वाटर पीता है वहीं गरीब आर्सेनिक एवं अन्य विषैले तत्व मिश्रित जल पीकर घातक रोगों की चपेट में आ रहा है। हमारी नदियां दूषित हो गई हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि मोक्षदायिनी मां गंगा अब आचमन और स्नान योग्य नहीं रहीं। हालांकि केंद्र सरकार की गंगा को स्वच्छ करने की अति महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे जिसमें हजारों करोड़ रुपये खर्च कर भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट जो गंगा को दूषित कर रहे है जब तक पूरी निष्ठा से कार्य नहीं किया जाएगा गंगा सहित सभी नदियों की यही दुर्दशा रहेगी।  
पर्यावरण की रक्षा करना स्वयं की रक्षा करना है। प्रकृति का हमने सम्मान नहीं किया तो अस्तित्व ही मिट जाएगा। सेन्टर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के अनुसार गंगा, यमुना विश्व की दस सबसे प्रदूषित नदियों में है। 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 13 सिर्फ भारत के शहर थे। टॉयलेट पेपर के लिए हर वर्ष 27 हजार पेड़ काट दिए जाते हैं।
2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आई भीषण आपदा भी प्रकृति के साथ हुई छेड़छाड़ के कारण आई। मंदाकिनी नदी के विकराल रूप ने हजारों लोगों को मौत के आगोश में ले लिया। वैज्ञानिकों का मानना था कि लोगों ने नदी के रास्ते में होटल, लॉज, छोटे गांव तक बसा लिए थे और परिणामस्वरूप हमें प्रकृति का रौद्र रूप देखने को मिला।
भारत में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है जिससे हर साल लाखों लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं। द लैसेन्ट की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 16.7 लाख मौतें केवल वायु प्रदूषण के कारण हुई जो कि कुल हुई मौतों का 18 प्रतिशत है। इससे अर्थव्यवस्था को करीब 2.6 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। वहीं 2017 में वायु प्रदूषण से 12 लाख 40 हजार लोग भारत में काल कल्वित हुए थे। वायु प्रदूषण से श्वशन सम्बन्धी बीमारियां, स्ट्रोक, फेंफड़े का कैंसर , डायबिटीज जैसी तमाम बीमारियां जन्म लेती हैं। वायु प्रदूषण डीजल पेट्रोल के उपयोग से, कल कारखानों से निकलने वाले धुंवे आदि से बढ़ता है जिसके कारण वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड, क्लोरा फ्लोरो कार्बन, सल्फर ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन की मात्रा बढ़ जाती है जो तमाम रोगों को जन्म देती है। इन कारणों से ही सूर्य की घातक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करने वाली ओजोन परत भी नष्ट होने लगी है। औद्योगिक अपशिष्टों और खेती में कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग की बजह से भूमि प्रदूषण हो रहा है जो कि बहुत घातक है।बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के कारण असमय बाढ़ आना, चक्रवात आना जैसी आपदाएं आ रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग का कारण वातावरण में मौजूद मीथेन , कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्साइड,क्लोरो फ्लोरो कार्बन, ग्रीन हाउस गैसें मौजूद रहती हैं। सूर्य की किरणें वायुमंडल से गुजरती हुई पृथ्वी की सतह से टकराती हैं और परावर्तित होकर वापस लौट जाती हैं। वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना होता है जिसमें ग्रीन हाउस गैसें भी होती हैं जो पृथ्वी के ऊपर एक आवरण बना लेती हैं। जब ग्रीन हाउस गैसों की सांद्रता बढ़ जाती है तो यह सूर्य से आने वाली किरणों का कुछ हिस्सा रोक लेती हैं जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगता है जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जिससे ग्रीन गैसों का उत्सर्जन होता है। पेड़ों के कटने से वातावरण में ग्रीन गैसों की सांद्रता बढ़ जाती है जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है परिणामस्वरूप असमय बाढ़, चक्रवात जैसी आपदाएं आती रहती हैं।
 प्रकृति से दूरी ने हमें रोगी बना दिया । प्रकृति के समीप रहकर ही स्वस्थ और प्रसन्न रहा जा सकता है। हमें संकल्प लेना होगा कि एक पौधा जरूर लगायेंगें और उसका संरक्षण भी करेंगे। बच्चे के जन्मदिन पर बच्चे से एक पौधा लगवाएं इससे पर्यावरण संरक्षण तो होगा ही साथ में जागरूकता भी आएगी ऐसे ही किसी मृत व्यक्ति की याद में भी पौधा रोपण कर सकते हैं। हम अपने आस पास स्वच्छता रखकर भी पर्यावरण संरक्षण में अपना सहयोग कर सकते हैं। बहुत से लोग अभी भी पॉलीथिन का प्रयोग करने से बाज नहीं आ रहे हैं जबकि हम सभी को पता है कि पॉलीथिन पर्यावरण के लिए कितनी खतरनाक है। लोगों को हम पॉलीथिन की जगह पेपर के बैग प्रयोग करने के लिए प्रेरित करें।अपने क्षणिक लाभ के लालच में जो हमने गलतियां की हैं उन्हें प्रकृति से प्रेम कर उनका संरक्षण कर सुधारा भी जा सकता है। यह सभी को करना होगा । प्रकृति हमारे लिए वरदान है लेकिन अगर इसके साथ छेड़छाड़ की तो इसके दुष्परिणाम को भी भुगतने के लिए हमें तैयार रहना होगा।
सादर
राघवेंद्र दुबे

Comments

  1. बहुत सुन्दर लेख है दुबे जी

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