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महंगाई की मार जनता लाचार

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इन दिनों महंगाई जिस तेजी से बढ़ रही है उसने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। पेट्रोल, डीजल, सीएनजी, पीएनजी, एलपीजी के लगातार बढ़ते दामों ने लोगों की कमर तोड़ने का काम किया है। पहले आपने देखा होगा कि दुकानों के बाहर और मकानों के बाहर लोग नीबू मिर्च की माला टांग देते थे जिससे अच्छी तरक्की हो और किसी की नजर ना लगे ऐसी मान्यता थी, लेकिन महंगाई की नजर खुद नीबू मिर्च को ही लग गई। नीबू जहां 300 रुपये किलो हो गया वहीं मिर्च भी और तीखी हो गई। अब बेचारा आम आदमी नजर उतारे या घर की नौका को पार उतारे। बेबस और लाचार नजरें कह रही हैं कि सरकार कुछ तो करो अब महंगाई की मार सही नहीं जा रही है।  खाने पीने की सभी चीजें महंगी हो गई है चाहे वह सब्जियां हों या फिर खाद्य तेल। अप्रैल 2022 में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) द्वारा जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की खुदरा महंगाई दर 8 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। खुदरा महंगाई दर अप्रैल में बढ़कर 7.79 फीसदी हो गई है। पिछले चार महीने से यह लगातार बढ़ रही है। जनवरी माह में जहां खुदरा महंगाई दर 6.01 फीसदी थी वहीं फरबरी में 6.07 फीसदी और मार्च में बढ़कर

शस्त्र और शास्त्र के अद्भुत संगम भगवान परशुराम

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भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम का जन्म भृगु वंश में हुआ। पिता का नाम महर्षि जमदग्नि और माता का नाम रेणुका। महर्षि जमदग्नि ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया जिससे प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने वरदान दिया। रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म हुआ वह अपनी माता पिता की पांचवीं संतान थे।  जन्म के बाद उनका नामकरण संस्कार किया गया और राम नाम रखा गया। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण उन्हें जामदग्नेय तथा भृगु वंश में जन्म लेने के कारण भार्गव नाम से भी जाना गया।  माता रेणुका से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की ततपश्चात महर्षि विश्वामित्र और महर्षि ऋचीक के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की। परशुराम जी की योग्यता से प्रभावित होकर महर्षि ऋचीक ने उन्हें सारंग नामक दिव्य धनुष  एवं महर्षि कश्यप ने वैष्णवी मन्त्र प्रदान किया। भगवान शिव के परम भक्त थे उन्होंने कैलाश पर कठोर तप कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न कर लिया। भगवान भोलेनाथ ने परशु दिया जिसके कारण उनका नाम परशुराम पड़ा। भगवान परशुराम का जन्म जरूर ब्राम्हण कुल में हुआ लेकिन उन्होंने क्षत्रियोचित व्यवहार कर वर्ण व्यवस्था की उस धारण

प्रकृति ईश्वर का अनुपम उपहार

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https://www.blogger.com/dashboard/reading प्रकृति हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनुपम उपहार है। स्वच्छ एवं सुरक्षित पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्राचीन समय में मनुष्य प्रकृति के करीब था इसलिए स्वस्थ और प्रसन्न रहता था। आज के परिवेश में देखा जाए तो मनुष्य   विलासिता पूर्ण जीवन जीने के लिये प्रकृति से दूर होता चला गया और कृत्रिम वातावरण में घिर गया फलस्वरूप तमाम व्याधियों को आमंत्रित कर लिया। प्रकृति से हमारा कितना प्रगाढ़ सम्बन्ध रहा है इस बात को सहजता से ही समझा जा सकता है। प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज प्रकृति की पूजा करते आये है । घर में तुलसी लगाना, पीपल, बरगद, आंवला जैसे वृक्षों की पूजा करना जो कि प्राणवायु ऑक्सीजन का प्रचुर मात्रा में उत्सर्जन करते हैं। प्राण वायु ही नहीं अपितु असाध्य रोगों को ठीक करने में पौधों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है।हमने गाय को माता का दर्जा दिया तो वही नदियों में गंगा और यमुना को मां कहा और उनकी आराधना की। हम सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी की भी पूजा करते आ रहे हैं। यह हमारा प्रकृति प्रेम ही था । आरामदायक और शान शौकत

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह एक विचारधारा का नाम

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चौधरी चरण सिंह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं खाँटी किसान नेता केवल नाम नहीं है वह एक विचारधारा हैं जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितना पहले थे।  चरण सिंह का जन्म एक जाट परिवार मे हुआ था। बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23 दिसम्बर,1902 को आपका जन्म हुआ। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था। चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द के पास भूपगढी आकर बस गये थे। यहीं के परिवेश में चौधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चौधरी चरण सिंह ने ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। चरण सिंह की राजनीति में कोई दुराव या कोई कपट नह

क्रूर कोरोना ने किया अनाथ, छीना माता पिता का साया

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किसी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कोरोना महामारी की विभीषिका इतनी दर्दनाक होगी जहां परिवार के परिवार खत्म हो जाएंगे।इस महामारी ने ना जाने कितने लोगों से उनके अपने प्रियजनों को छीन लिया वो बेबस और लाचार छटपटाते रहे लेकिन कुछ ना कर सके। उन बच्चों के बारे में सोचकर कलेजा मुंह को आता है जिन्होंने इस त्रासदी में अपने माता पिता दोनों को खो दिया है। जिस घर में कभी खुशियों की बहार थी आज वहां पर मातम है , सन्नाटा पसरा हुआ है। सिस्टम के नाकारापन से जिन्हें बचाया जा सकता था हम उन्हें भी ना बचा पाए। जिन बच्चों के माता पिता असमय काल के गाल में समा गए कल्पना करने से ही मन सिहर उठता है।   भारत सरकार ने राज्यों से मिले आंकड़ों के आधार पर बताया है कि 1 अप्रैल 2021 से 25 मई 2021 तक  कोरोना महामारी की दूसरी लहर में  577 बच्चे अनाथ हो गये हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यों से मिली रिपोर्ट का हवाला देते हुए कि सरकार इन बच्चों के संरक्षण एवं देखरेख के लिए तैयार है।अगर ऐसे बच्चों को कॉउंसलिंग की जरूरत पड़ती है तो राष्ट्रीय मानसिक जांच एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थ

इजरायल और फिलिस्तीन के खूनी संघर्ष की कहानी

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इजरायल और फिलिस्तीन के बीच पिछले 11 दिनों से संघर्ष चल रहा था। दोनों ओर से सैकड़ों हवाई हमले और भीषण गोलाबारी हुई हालांकि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच दोनों संघर्ष विराम पर राजी हो गए जिससे दुनियां ने राहत की सांस ली। संघर्ष के दौरान बड़ी संख्या में बेगुनाह लोग और मासूम बच्चे मारे गए। जहां सभी देश कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहे हैं और लाखों लोग महामारी से असमय काल के गाल में समा गए वहीं इजरायल की विस्तारवादी नीति व दमनकारी नीति के कारण फिलिस्तीन व इजरायल में भीषण खूनी संघर्ष शुरू हो गया। इस संघर्ष में फिलिस्तीन के 232 लोग मारे गए जिसमें 65 बच्चे भी थे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अपने स्वार्थ के कारण उन मासूमों को भी मौत के घाट उतार दिया गया जिन्होंने अभी दुनिया को सही से देखा तक ना था। इस संघर्ष में फिलिस्तीन के 1900 लोग घायल हुए और एक लाख बीस हजार लोग बेघर हुए वहीं इजरायल के 12 लोगों की जान चली गई। भारत हमेशा से फिलिस्तीन का समर्थक रहा है लेकिन वर्तमान मोदी सरकार के रिश्ते इजरायल से भी बेहतर हुए है इसी का कारण था कि खुलकर फिलिस्तीन का पक्ष लेने वाले भारत ने तटस्थ प्रतिक्रिया

नहीं रहे पर्यावरण चेतना के प्रखरतम संवाहक

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पर्यावरण चेतना के प्रखरतम संवाहक प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने 21 मई 2021 को अंतिम सांस ली। सुंदर लाल बहुगणा कोरोना से संक्रमित हो गए थे जिन्हें ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। चिपको आंदोलन के प्रणेता एवं विश्व में वृक्ष मित्र के नाम से मशहूर बहुगुणा का निधन देश के लिए अपूर्णीय क्षति है। ऐसी सख्शियत सदियों में एक बार जन्म लेती है। जल जंगल जमीन को आजीवन अपनी प्राथमिकता में रखने वाले और वंचितों को उनका अधिकार दिलाने के लिए उनके प्रयास को सदैव याद रखा जाएगा।  सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को देवभूमि उत्तराखंड के सिलयारा नामक स्थान पर हुआ था । प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह लाहौर चले गए जहां पर उन्होंने बीए की शिक्षा पूर्ण की। सन 1949 में वह मीरा बेन व ठक्कर बाप्पा के संपर्क में आये और दलित विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए। उन्होंने दलित विद्यार्थियों के लिए बाप्पा होस्टल की स्थापना की साथ ही दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किया। प्रदूषण से होने वाली तबाही की बात तो