इजरायल और फिलिस्तीन के खूनी संघर्ष की कहानी

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच पिछले 11 दिनों से संघर्ष चल रहा था। दोनों ओर से सैकड़ों हवाई हमले और भीषण गोलाबारी हुई हालांकि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच दोनों संघर्ष विराम पर राजी हो गए जिससे दुनियां ने राहत की सांस ली। संघर्ष के दौरान बड़ी संख्या में बेगुनाह लोग और मासूम बच्चे मारे गए। जहां सभी देश कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहे हैं और लाखों लोग महामारी से असमय काल के गाल में समा गए वहीं इजरायल की विस्तारवादी नीति व दमनकारी नीति के कारण फिलिस्तीन व इजरायल में भीषण खूनी संघर्ष शुरू हो गया। इस संघर्ष में फिलिस्तीन के 232 लोग मारे गए जिसमें 65 बच्चे भी थे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अपने स्वार्थ के कारण उन मासूमों को भी मौत के घाट उतार दिया गया जिन्होंने अभी दुनिया को सही से देखा तक ना था। इस संघर्ष में फिलिस्तीन के 1900 लोग घायल हुए और एक लाख बीस हजार लोग बेघर हुए वहीं इजरायल के 12 लोगों की जान चली गई। भारत हमेशा से फिलिस्तीन का समर्थक रहा है लेकिन वर्तमान मोदी सरकार के रिश्ते इजरायल से भी बेहतर हुए है इसी का कारण था कि खुलकर फिलिस्तीन का पक्ष लेने वाले भारत ने तटस्थ प्रतिक्रिया व्यक्त की और दोनों देशों से युद्ध विराम की अपील की।

आखिर दोनों देशों के बीच संघर्ष क्यों शुरू हुआ ? इसका बड़ा कारण था शेखजर्रा पर आदेश । सुप्रीम कोर्ट ने सात फिलिस्तीनी परिवारों को पूर्वी येरुशलम से निकालने का आदेश दिया। सत्तर फिलिस्तीनियों  को निकालकर यहूदियों को वहां लाने की तैयारी की जा रही थी। येरुशलम में इजरायल पुलिस की हैकड़ी के कारण हालात बिगड़े। झड़प की शुरुआत अल अक्शा मस्जिद से शुरू हुई जिसे इस्लाम में तीसरी सबसे पाक जगह माना गया है। पुलिस ने यहां आंसू गैस के गोले दाग दिए जिससे हालात बिगड़ गए फिलिस्तीनियों ने भी पुलिस पर पथराव कर दिया। मस्जिद में हैंड ग्रेनेड फेंकने से हालात बेकाबू हो गए। फिलिस्तीनी गुट हमास ने इजरायल पर कई रॉकेटों से हमला कर दिया जबाबी कार्यवाई में इजरायल ने हमास के 150 से अधिक ठिकानों पर एक साथ हमला किया। इजरायल ने तेरह मंजिली इमारत और नौ मंजिला इमारत पर हमला कर उन्हें ध्वस्त कर दिया । इन्हें रिहायशी इमारत बताया जा रहा है जिसमें निर्दोष लोगों की जानें चली गईं।
सन 2014 में इजरायल और फिलिस्तीन के बीच 50 दिन तक भयंकर युद्ध हुआ था। इससे पहले 1967 में अरब देशों ने इजरायल पर हमला किया जिसे इजरायल ने 6 दिन में ही जीत लिया था और उसने फिलिस्तीन के कब्जे वाले वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी येरुशलम पर अपना आधिपत्य जमा लिया ज्यादातर फिलिस्तीनी गाजा और वेस्ट बैंक में रहते हैं।
अगर इनके संघर्ष के इतिहास को देखें तो यह सदियों पुराना है। 72 ईशा पूर्व रोमन साम्रज्य ने इस इलाके पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया। यहूदियों के साथ ज्यादती की गईं। इसके बाद सारे यहूदी दुनिया भर में इधर उधर जाकर बस गए। यहूदी बड़ी संख्या में यूरोप और अमेरिका में जाकर बस गए। 1860 में जन्में थिओडोर हरजल नाम के यहूदी जो वियना में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते थे जिन्होंने वर्तमान इजरायल की सैद्धांतिक रूप से नींव रखी थी। भेदभाव के कारण उन्हें वियना छोड़ना पड़ा इसके बाद वह फ्रांस में जाकर बस गए जहां उन्होंने बतौर पत्रकार काम किया।उन्होंने निर्णय लिया कि वह दुनिया भर में फैले यहूदियों को इकट्ठा करेंगे और नए देश की स्थापना करेंगे। स्विट्जरलैंड में 1897 में उन्होंने जायनिस्ट कांग्रेस की स्थापना की जिसमें सभी यहूदी चंदा देने लगे और विश्व सम्मेलन का आयोजन होने लगा। 1904 में हरजल का दिल की बीमारी के कारण निधन हो गया इसके बावजूद आंदोलन बढ़ता रहा।
तुर्की में आटोमन साम्राज्य का परचम लहरा रहा था। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन और यहूदियों में समझौता हुआ कि अगर ब्रिटेन आटोमन साम्राज्य को हरा देता है तो यहूदियों के लिए अलग साम्राज्य की स्थापना की जाएगी। इस समझौते के बाद जायनिस्ट कांग्रेस को लगा कि अगर ब्रिटेन वादा पूरा करता है तो नए देश की स्थापना के लिए बड़ी आबादी की जरूरत होगी ऐसे में यहूदियों ने धीरे धीरे अपने देशों को छोड़कर फिलिस्तीन में बसना शुरू किया लेकिन ब्रिटेन ने अपना वादा पूरा नहीं किया लेकिन यहूदियों को बसाने में तमाम मूलभूत सुविधाएं मुहैया जरूर कराई। यहीं से फिलिस्तीनियों और यहूदियों का संघर्ष शुरू हो गया। हिटलर का 1933 में जर्मनी  में साम्राज्य स्थापित होने के बाद उसने यहूदियों को खत्म करने की योजना बनाई 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 6 साल में उसने साठ लाख से ज्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया जिसमें पन्द्रह लाख बच्चे थे।  उस दौरान अपनी जान बचाने के लिए बड़ी संख्या में यहूदी फिलिस्तीन में आ गए जिससे फिलिस्तीनियों को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी और दोनों का संघर्ष मुखर होने लगा।
 जब फिलिस्तीनियों और यहूदियों का संघर्ष संभालना मुश्किल हो गया तो फिलिस्तीन पर शासन कर रहा ब्रिटेन ,29 नवंबर 1947 को मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गया। द्विराष्ट्र सिद्धांत के तहत फैसला सुनाते हुए इलाके को यहूदी और अरब देशों में बांट दिया गया। यहूदियों ने इसे स्वीकार कर लिया। 1948 में ब्रिटेन के जाने के बाद 14 मई 1948 को यहूदियों का देश इजरायल अस्तित्व में आया।
फिलिस्तीन का कहना है कि इजरायल 1967 से पहले की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं तक वापस लौटे और पूर्वी येरुशलम पर अपना दावा छोड़े। इजरायल येरुशलम को अपनी राजधानी बताता है। ऐसे संघर्षों की पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को एक साथ आकर इस मसले का समाधान ढूंढना ही होगा। युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। युद्ध से केवल विनाश को ही आमंत्रित किया जा सकता है । संघर्ष में कितने ही निर्दोषों और मासूमों की जान चली गईं जिसकी कड़े शब्दों में निंदा होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ की निगरानी में विस्थापितों का पुनर्वास कराया जाए जो घायल है उनका सही से उपचार हो और जो लोग हमले मारे गए हैं उनके परिवारों को वित्तीय सहायता मिले।विस्तारवादी नीति मानवता के लिए बेहद घातक है इसके लिए सभी देशों को मिलकर ऐसे देशों पर अंकुश लगाना होगा नहीं तो भविष्य में गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।
भवदीय
राघवेंद्र दुबे


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