आतंकियों और पत्थरबाजों की हमदर्द महबूबा

जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती का आतंकियों और पत्थरबाजों के प्रति प्रेम फिर उजागर हो गया है , जब उन्होंने भाजपा की केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि रमजान के महीने में सेना एकतरफा युद्धविराम की घोषणा करे। उन्होंने कहा कि सेना के लगातार एनकाउन्टर, क्रैकडाउन और सर्च ऑपरेशन से आम आदमी को परेशानी हो रही है।
  महबूबा मुफ़्ती ने वाजपेयी सरकार का हवाला देते हुए कहा कि 2000 में अटल विहारी वाजपेयी ने एकतरफा यद्धविराम की घोषणा की थी। उन्होंने इसी बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 15 अगस्त को लाल किला की प्राचीर से दिया हुआ भाषण भी याद दिलाया जिसमें उन्होंने कश्मीरियों को गले लगाने की बात कही थी।
सवाल ये है कि रमजान के बहाने और आम नागरिकों की परेशानी का हवाला देकर महबूबा मुफ़्ती आतंकियों और पत्थरबाजों को बचाने की कोशिश तो नहीं कर रहीं है। कुछ दिन पहले ही महबूबा ने आतंकियों और पत्थरबाजों को अपना बच्चा कहा था। जब इनकी सोच ही आतंकियों की सोच से मेल खाती है तो जम्मू कश्मीर में हालात कैसे सुधार सकते हैं। रमजान जैसे पाक महीने में क्या आतंकी सेना और आम नागरिकों पर् हमला करना छोड़ देते हैं ?, अगर नहीं तो फिर सेना आम नागरिकों की सुरक्षा को छोड़कर हाथ पर हाथ रखकर कैसे बैठ सकती है।
  आर्मी चीफ विपिन रावत ने पत्थरबाजों से चेतावनी भरे लहजे में कहा कि वह सेना से नहीं लड़ सकते इसलिए गलत रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में युवा शामिल हों। आर्मी चीफ ने सवालिया लहजे में पूंछा कि अगर एकतरफा युद्ध विराम होता है तो आतंकियों और पत्थरबाजों की जिम्मेदारी कौन लेगा जो लगातार सेना और आम नागरिकों पर् हमला कर रहे हैं।
  पिछले तीन वर्षों में पत्थरबाजी से 110 लोगों की मौत हो चुकी है । पत्थरबाजी में तीन साल में 3 पुलिसकर्मियों की मौत के अलावा 11556 सुरक्षा बल के जवान जख्मी हुए हैं। 2015 से 2017 के बीच 3773 पत्थरबाजी के केश दर्ज हुए। 2016 में पत्थरबाजी से 9235 जवान जख्मी हुए। महबूब सरकार ने फरबरी 2018 में 9737 पत्थरबाजी के केश वापस ले लिए जिससे 2008 से 2017 तक के पत्थरबाजों को राहत मिल गयी।
ये है जम्मू कश्मीर की महबूबा सरकार के कारनामे जिसने पत्थरबाजों से केश वापस ले लिए जिन्होंने पत्थरबाजी से जाने कितने निर्दोष लोगों की जान ली और हमारे देश की रक्षा में तैनात सेना के जवानों को गंभीर रूप से घायल किया। ये वही पत्थरबाज हैं जो आतंकियों से फंडिंग लेकर हमारी सेना पर ही हमला करते है। सर्च ऑपरेशन में जब सेना आतंकियों से लोहा ले रही होती है तब ये देश विरोधी पत्थरबाज पत्थरबाजी की आड़ में आतंकियों की मदद कर उन्हें भाग जाने का मौका देते है । ऐसे देश विरोधियों से केश वापस ले लिए गए। देश की विडंबना ये भी है कि अपने आप को सबसे देशभक्त पार्टी होने का तमगा देने वाली बीजेपी भी पाकिस्तान परस्त पीडीपी की गोद में बैठकर सत्ता का सुख भोग रही है।
महबूबा मुफ्ती इससे पहले भी आतंकियों और पत्थरबाजों के पक्ष में कई बार विवादित बयान दे चुकी हैं। ये वही महबूबा मुफ्ती हैं जिन्होंने 2001 में भारतीय संसद पर आतंकी हमले में शामिल जैश ए मोहम्मद के आतंकी अफजल गुरु को शहीद बताया था। अफजल गुरु को आतंकी हमले का दोषी मानते हुए 2013 में दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुबह फांसी दे दी गयी थी।पीडीपी ने उस समय अफजल गुरु को फांसी दिए जाने को न्याय का मजाक बताया था।
जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूब मुफ़्ती ने बीजेपी को धमकी भरे लहजे में कहा था कि अगर धारा 370 के साथ छेड़छाड़ की गई तो तिरंगे की हिफाजत करने वाला कोई नहीं होगा। तिरंगे को पकड़ने वाले एक भी नागरिक नहीं मिलेगा। और आप सभी को मालूम है कि सत्ता की लाचारी ने बीजेपी सरकार को खामोश कर दिया है जिसने लोकसभा चुनाव में धारा 370 हटाने का वादा किया था वह सत्ता के लिए बेमेल गठबंधन को निभा रही है।
एनआईए ने जून 2017 में दहशतगर्दो को फंडिंग करने वालों पर छापेमारी शुरू जिसमें अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारी हुई। 24 जुलाई 2017 को सात हुर्रियत नेताओं को गिरफ्तार किया गया तो महबूब मुफ़्ती ने उनकी गिरफ्तारी का विरोध किया।
27 जून 2018 में सेना की फायरिंग में दक्षिण कश्मीर के तीन नागरिक मारे गए। महबूबा सरकार ने सेना के अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। सेना अधिकारी के पिता इसके खिलाफ कोर्ट गए जहां पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को मुकदमा खत्म करने का निर्देश दिया। किस तरह महबूब सरकार सेना का मनोबल लगातार तोड़ने की कोशिश करती रही है लेकिन हमारे देश के जांबाज इससे विचलित हुए बिना अपने कर्तव्य पथ लगातार डटे हैं।
2 मई 2018 को पत्थरबाजों ने बच्चों से भरी एक स्कूल बस पर हमला कर दिया जिसमें 2 बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गये। चेन्नई के 22 वर्षीय पर्यटक तिरुमाड़ी को पत्थरबाजों ने पत्थर मार मारकर मार डाला। देश द्रोही पत्थरबाजों को अगर मासूमों पर दया नहीं आती और कश्मीर के पर्यटकों को वह अपना दुश्मन मानते हैं ,ऐसे में उनके लिए दया की भीख मांगना कैसे उचित होगा।
आतंकी बुरहान बानी को शहीद बताने वाले लोग देश प्रेमी कैसे हो सकते हैं। बुरहान बानी के मारे जाने के बाद पाक पोषित आतंकी और पत्थरबाज बौखला गए। उस दौरान 146 लोग मारे गए और 9 हजार लोग घायल हुए। पूरी घाटी में जमकर तांडव किया गया। कल्पना करिए कि जिस देश का नमक खाते है उसी देश से गद्दारी करते हैं जिसे हरगिज माफ नहीं किया जा सकता है।
  पत्थरबाजों की टोलियां लगातार सेना पर हमला करती रहती है। इसके बावजूद भी हमारी सेना धैर्य और सूझबूझ से काम लेती है। अगर सेना चाहे तो पत्थरबाजों को आंसू गैस के गोले,पेपर सेल की जगह गोली से भी जबाब दे सकते हैं लेकिन सेना के जवान जख्म खाकर भी गोली से जबाब नहीं देते।
कश्मीर को दुनिया का स्वर्ग कहा जाता है। जहां का नैसर्गिक सौंदर्य सैलानियों का मन मोह लेता है। कश्मीर की वादियों में पसरी प्रकृति की अनुपम छटा पर्यटकों को अपनी ओर अनायास ही आकर्षित करती है। कश्मीर पर्यटन के लिए जाना जाता था लेकिन आतंकियों और पत्थरबाजों ने वहां की खुशनुमा फिजा में नफरत का जहर घोल दिया है। जहां की वादियों में मोहब्बत के गीत गूंजा करते थे ,वहां पसरा सन्नाटा अपने पुराने दिनों की बाट जोह रहा है।
  उत्तर प्रदेश में जब सपा बसपा का उपचुनाव में गठबंधन हुआ तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह सांप छछूंदर का गठजोड़ है। विपक्षी पार्टियों पर हमला करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी विरोधियों के गठबंधन को अनैतिक बताया। प्रश्न ये उठता है कि आपका जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन नैसर्गिक है क्या ?। आप सत्ता के लिए ऐसी पार्टी की गोद में बैठे है जिसने हमेशा आतंकियों और पत्थरबाजों की पैरवी कर अपनी पाक परस्ती का सबूत दिया है। महबूबा मुफ़्ती रमजान के नाम पर केंद्र सरकार से आतंकियों और पत्थरबाजों की जान की भीख मांग रही हैं। बीजेपी को महबूबा से साफ साफ कह देना चाहिए कि ये आतंकियों व पत्थरबाजों से हमदर्दी छोड़ दें। सेना अपना काम कर रही है उसे अपना काम करने दें उसमें रुकावट ना बनें। सेना आपरेशन आल आउट चला रही है जिसमें अभी तक 211 आतंकी मारे गए हैं। आतंकियों की कमर टूटती देख महबूबा मुफ्ती से रहा नहीं गया और केंद्र से एकतरफा यद्धविराम की अपील करने लगीं। सेना की लगातार सक्रियता के बावजूद उन पर लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं ,ऐसे में अगर सेना को रोक दिया गया तो इसके दुष्परिणाम की कल्पना भी नहीं कि जा सकती है। जब तक सेना अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेती तब तक युद्धविराम नहीं किया जा सकता है। सेना की कार्यवाही में राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। सेना है तो हम हैं, सेना है तो हम सुरक्षित हैं। विषम परिस्थितियों में रहकर , देश के दुश्मनों से लड़ते हुए हमारी रक्षा करने वाले ऐसे जांबाजों को नमन। हम ऐसे हर व्यक्ति का विरोध करते हैं जो देश के जांबाजों का मनोबल तोड़ने का काम करते हैं।
सादर
राघवेंद्र दुबे


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