मेरी माँ

उसको नहीं देखा हमने कभी,हमें उसकी जरूरत क्या होगी। मां तेरी सूरत के आगे भगवान की मूरत क्या होगी।। मां शब्द ऐसा है जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता है। हम कह सकते हैं कि मां शब्द से ही सम्पूर्ण ब्रम्हांड परिभाषित है। बच्चा जब मां के गर्भ में होता है तो माँ अपनी अस्थि, मज्जा, रक्त और श्वांस देकर उसको जीवन प्रदान करती है। माँ तमाम कष्टों को सहकर अपने बच्चे को जन्म देती है, बच्चे की खुशी में उसे लगता है जैसे संसार की सारी खुशियां उसके हिस्से में आ गयी हों।
  उन सर्द रातों में अपने बच्चे को सूखे में सुलाकर खुद गीले में सो जाती , ऐसी होती है माँ। बच्चे को थोड़ी सी तकलीफ होती तो माँ रात जागकर काट देती ,सुबह का इंतजार करती और डॉक्टर के पास दिखाने के लिए दौड़ती। दवा दिलाती, दुआ भी देती और जब लगता मेरे लाल को किसी की नजर तो नहीं लग गयी , मन को संतुष्टि नहीं होती तो टोना टोटका कर नजर भी उतारती। संसार में सभी ऋणों से मुक्त हुआ जा सकता है लेकिन मां का ऋण कभी नही चुकाया जा सकता।
  मां उंगली पकड़कर चलना सिखाती है , जब हमारे कदम लड़खड़ाते हैं तो वो सहारा देकर हमें गिरने से बचा लेती है।" पहला कदम जो देख मेरा,वो तेरी मुस्कान। जैसे पूरे हो गए हों , दुनिया के सारे अरमान।।"जब हम अपना पहला कदम बढ़ाते हैं तो माँ यह देखकर हर्षित होती है।
  बच्चे की प्रथम गुरु मां होती है। माँ अच्छे बुरे का भेद बताती है, क्या खाना है क्या नहीं, क्या आचरण करना है क्या नहीं, क्या हितकर है क्या नहीं। यह सब हमें मां सिखाती है। माँ के पावन सानिध्य में ही संस्कारों का समावेश हमारे अंतर्मन में होता है।
   एक मां ही है जिसके वश में स्वयं भगवान भी हो गए।ब्रम्ह स्वरूप बाल कृष्ण को माता यशोदा गलती करने पर लकुटी लेकर दौड़ाती हैं। पकड़े जाने पर बालकृष्ण मां से कान पकड़कर माफी मांगते हैं, वात्सल्य स्वरूपा माता यशोदा कृष्ण को माफ कर देती हैं। जिस ब्रम्ह की माया के वशीभूत होकर चौरासी लाख योनियों के जीव आवागमन की दौड़ लगा रहे हों वही ब्रम्ह एक जीव ( मां के वात्सल्य) के आगे दौड़ लगा रहा है। ये है माँ की महिमा जिसके आगे स्वयं जगतपति जगदीश्वर भी नतमस्तक हो गए।
  हम अगर कभी थोड़ा कम खाना खा लें तो माँ चिंतित हो उठती है। हमें घर आने में थोड़ी देर हो जाये तो माँ दरवाजे पर बेसब्री से इंतजार करती मिलती है। " माँ जीवन है, ज्योति है। माँ मेरे हर दुख पर रोती है "। मां हमारी सलामती की दुआ ईश्वर से हमेशा मांगती रहती है ताकि हमारे ऊपर कोई संकट ना आये। मां हमें हर आपदा से बचाने के लिए , हमारे आगे ढाल बनकर खड़ी रहती है।
  बचपन में जब हमें किसी चीज की जरूरत होती, तो माँ के पास पहुंचकर अपनी फ़रमाइश बताते, मां हमारी हर जरूरत को पूरा करती । अपने बच्चे को खिलाकर ,खुद भूखे सो जाती फिर भी खुशी का अनुभव करती।
" लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती, बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती"। किसी ने कहा कि " ऊपर जिसका अंत नहीं होता उसे आसमान कहते हैं, जमीं पे जिसका अंत नहीं होता उसे मां कहते हैं"।
   आधुनिक परिवेश में हमने देखा है कि जहां मां विकट परिस्थितियों में रहकर अपने बच्चों का लालन पालन करती है। खुद अभाव में रहकर बच्चों को इसका अहसास नहीं होने देती, बच्चों को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाती है। वही बच्चे काबिल बनकर अपने माँ बाप का तिरस्कार कर देते हैं। बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिनके होते हुए उनके मां बाप वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं। जब हम छोटे होते तो माँ बाप उंगली पकड़कर चलना सिखाते हैं ,हमारे डगमगाते कदमों को सहारा देते लेकिन जब उन्हें वृद्धावस्था में हमारी जरूरत होती तो हम उन्हें असहाय छोड़कर चले आते हैं। सोचिए कितना कलेजा छलनी होता होगा उनका जिन्होंने अपने जीवन के सारे अरमानों की तिलांजलि देकर तुम्हें काबिल बनाया था। वृद्धाश्रम की ओर आती हर आहट पर उन्हें लगता होगा कि आज मेरा बच्चा शायद मुझसे मिलने आ रहा है, लेकिन उन सूनी आंखों का इंतजार खत्म नहीं होता। इंतजार करते करते देह निष्प्राण हो जाती है। माँ बाप का उपकार चुकाया नहीं जा सकता इसलिए इनकी सेवा कर हमेशा आशीर्वाद लेते रहो ।
  " मां की दुआ कभी खाली नहीं जाती, मां की बात भगवान से टाली नहीं जाती"।  मां हरियाली है, मां खुशहाली है, मां बच्चों की रखवाली है, मां होली है माँ दीवाली है। भगवान को तो नहीं देखा लेकिन मां के रूप में भगवान को देखा है। भगवान ने मां को हमारे पास भेजा है , सभी दुखों को खत्म करने के लिए, हमारी हर मन्नत पूरी करने के लिए।
  मां अपने बच्चे से कभी नाराज नहीं होती है वह तो हमेशा उसकी तरक्की के लिए दुआ करती है। हम तो पत्थर थे जिसे तराशकर मां ने हीरा बना दिया। मां कभी अपने बच्चों से धन दौलत नहीं चाहती वह तो केवल प्रेम चाहती है। माँ पास है तो समझो दुनिया की सारी दौलत तुम्हारे पास है, अगर माँ
तुम्हारे पास नहीं तो तुमसे बड़ा कंगाल कोई नहीं।
  ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया।
मां ने आंखे खोल दी, घर में उजाला हो गया।।
इस तरह वो मेरे गुनाहों को धो देती है।
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।।

मां की सेवा ईश्वर की इबादत है। मां को दुख पहुंचाना अपने ईश्वर को नाराज करना है। माँ का आशीर्वाद सफलता की कुंजी है। युवा जहां पाश्चात्य सभ्यता के वशीभूत होकर अपने सनकारों को भूल रहे है। अपने माता पिता की सलाह को वह पुरानी सोच बताकर अनसुना कर देते हैं जिसका दुष्परिणाम आगे उन्हें भुगतना पड़ता है। अपने माता पिता के जीवन के अनुभव को आशीर्वाद स्वरूप लेते रहो। कई माता पिता सक्षम संतान होने के बावजूद एकाकी जीवन जीने को मजबूर हैं। कहते हैं जैसा बोओगे वैसा काटोगे, आप अपने माँ बाप के साथ जैसा व्यवहार करोगे आपकी आने वाली संतानें आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगी। इसलिए अपने साथ अच्छा सुलूक चाहते हो तो अपने माता पिता के साथ भी आदरपूर्ण व्यवहार करिये।



  मां के चरणों में कोटिशः नमन। आज संकल्प लें कि जाने अनजाने कभी अपनी मां और पिता को कष्ट नहीं देंगे। हम ऐसा कार्य करें जिससे वो गौरवान्वित हों और उन्हें अहसास हो कि उनके बच्चे उनकी पाठशाला में सीखे संस्कारों को आगे बढाने का कार्य कर रहे हैं। मां उस वटवृक्ष की तरह है जो अपने बच्चों को शीतल छाया देकर दुखों की धूप उनके ऊपर नहीं पड़ने देती।
" चलती फिरती आंखों से अजान देखी है, मैने जन्नत तो नहीं देखी मां देखी है"।।
सादर
राघवेंद्र दुबे

 


Comments

  1. बहुत ही सुंदर रचना "मेरी माँ" सत् सत् नमन

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  2. हजार फूल चाहिए एक माला बनाने के लिए
    हजार दीपक चाहिए एक आरती सजाने रे लिए
    हजार बुँद चाहिए समुन्द्र बनाने के लिए
    परन्तु माँ अकेली काफी हैं , बच्चों के जीवन को स्वर्ग बनाने के लिए।

    माँको कोटि कोटि प्रणाम🙏

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  3. मां तो माँ होती है

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  4. बेहतरीन, मां की कल्पना मात्र ही समूचे जीवन का दर्शन करा देती है। अपने हर पहलू को उजागर किया है।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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