नहीं रहे पर्यावरण चेतना के प्रखरतम संवाहक
पर्यावरण चेतना के प्रखरतम संवाहक प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने 21 मई 2021 को अंतिम सांस ली। सुंदर लाल बहुगणा कोरोना से संक्रमित हो गए थे जिन्हें ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।
चिपको आंदोलन के प्रणेता एवं विश्व में वृक्ष मित्र के नाम से मशहूर बहुगुणा का निधन देश के लिए अपूर्णीय क्षति है। ऐसी सख्शियत सदियों में एक बार जन्म लेती है। जल जंगल जमीन को आजीवन अपनी प्राथमिकता में रखने वाले और वंचितों को उनका अधिकार दिलाने के लिए उनके प्रयास को सदैव याद रखा जाएगा।
सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को देवभूमि उत्तराखंड के सिलयारा नामक स्थान पर हुआ था । प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह लाहौर चले गए जहां पर उन्होंने बीए की शिक्षा पूर्ण की। सन 1949 में वह मीरा बेन व ठक्कर बाप्पा के संपर्क में आये और दलित विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए। उन्होंने दलित विद्यार्थियों के लिए बाप्पा होस्टल की स्थापना की साथ ही दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किया।
प्रदूषण से होने वाली तबाही की बात तो सभी करते हैं लेकिन उसके खात्मे की दिशा में प्रयास की हिम्मत हर कोई नहीं जुटा पाता। पर्यावरण सुरक्षा के लिए अपना पूरा जीवन अर्पित करने वाले हिमालय रक्षक सुंदरलाल बहुगुणा को पर्यावरण संरक्षण के भगीरथ प्रयास के लिए हमेशा याद रखा जायेगा। उन्होंने 13 वर्ष की छोटी सी उम्र में राजनैतिक पारी की शुरुआत की इसके लिए उनके मित्र श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया। सुमन गांधी जी के अनुयायी थे उनसे बहुगुणा ने सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग पर चलकर समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है। सन 1956 में उनकी शादी विमला देवी नौटियाल से हो गई। शादी से पहले उन्होंने विमला देवी से शर्त रखी कि अगर वह गाँव में रहने को तैयार है तभी उनसे शादी करें। विमला देवी की सहमति के बाद विवाहोपरांत उन्होंने पहाड़ियों में आश्रम खोला । 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन व पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया।
पर्यावरण सुरक्षा के लिए चिपको आंदोलन शुरू हुआ जो धीरे धीरे पूरे भारत में फैल गया। पेड़ो को काटने के विरोध में आंदोलन लगातार जोर पकड़ रहा था। 26 मार्च 1974 चमोली जिले की महिलायें उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आये यह विरोध पूरे देश में फैल गया। यह आंदोलन चिपको आंदोलन के नाम से मशहूर हुआ। चिपको आंदोलन के दौरान कई नारे प्रचलित हुए। "क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार" मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के अधिकार"।1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने लगभग 5000 किलोमीटर की यात्रा की इस दौरान उन्होंने गावों का दौरा किया लोगों से मिले और पर्यावरण सुरक्षा का संदेश दिया। पर्यावरण संरक्षण को लेकर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान उन्होंने हरे पेड़ को काटने पर 15 वर्ष का प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया जिसके बाद पेड़ों को काटने पर 15 वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया गया। वह टिहरी बांध परियोजना के खिलाफ डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल पर बैठ गए उनका कहना था कि बांध बनने से टिहरी जंगल बर्बाद हो जाएगा। उनका कहना था कि भूकंप आने की स्थिति में बाँध भले ही भूकंप का सामना कर ले लेकिन पहाड़ियां भूकंप का सामना नहीं कर पाएंगी क्योंकि पहाड़ियों में पहले से ही दरारें हैं। अगर बांध टूटा तो 12 घंटे में बुलंदशहर तक का इलाका इसमें डूब जाएगा। 1995 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के आश्वाशन पर उन्होंने भूख हड़ताल खत्म की। नरसिंह राव ने पारिस्थिति प्रभावों पर समीक्षा के लिए समिति गठित की। बहुगुणा ने बाद में जल और बांध की अपेक्षा पर्यावरण संरक्षण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए उनके महत्वपूर्ण प्रयासों के लिए उन्हें तमाम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1981 में पदम श्री दिया गया हालांकि उन्होंने इसके लिए मना कर दिया। 1984 में राष्ट्रीय एकता पुरस्कार,1986 में रचनात्मक कार्यों के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार दिया गया। चिपको आंदोलन के लिए उन्हें 1987 में राइट लाइवलीहुड पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2009 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पदम विभूषण से सम्मानित किया गया।
पर्यावरणविद बहुगुणा का कहना था कि पारिस्थितिकी स्थाई अर्थव्यवस्था है। पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना बहुत महत्वपूर्ण है। जहां मनुष्य अपने क्षणिक लाभ के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में तनिक भी सोच विचार नहीं करता वहीं एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने प्रकृति को ही अपना मित्र बना लिया। उन्हें पता था कि अगर मनुष्य पर्यावरण को दूषित करेगा तो इसके दुष्परिणाम को भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा। हमारी सुंदरलाल बहुगुणा को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके द्वारा जीवन पर्यंत पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए कार्यों को आगे बढ़ाएं और प्रदूषण के खात्मे के लिए अपने तरफ से भी सार्थक प्रयास करें। ऐसे महापुरुष सदियों में एक बार जन्म लेते हैं जिनका जन्म ही मानव कल्याण के लिए होता है। कोरोना महामारी ने हमसे एक अमूल्य धरोहर छीन ली है जिसकी भरपाई करना मुश्किल है। पर्यावरण संरक्षक वृक्ष मित्र को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
सादर
राघवेंद्र दुबे
भगवान आपको अपने श्री चरणों में जगह दे
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