नर्मदा घोटाला यात्रा निकालने जा रहे पांच संतों को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने दिया राज्यमंत्री का दर्जा

राजनीति भी अजब चीज है , नेता तो नेता अब संतों के सिर चढ़ कर बोल रही है। यह चमत्कार हुआ है मध्यप्रदेश में जहां मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने पांच संतों कम्प्यूटर बाबा,भय्यू जी महाराज,नर्मदानंद महाराज,हरिहरानंद महाराज,योगेंद्र महंत को राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया। दरअसल ये संत शिवराज सरकार से नाराज थे और लगातार भ्रष्टाचार के आरोप भी लगा रहे थे। 1अप्रैल से 15 मई तक ये संत कम्प्यूटर बाबा और योगेंद्र महंत के संयोजन में नर्मदा घोटाला रथ यात्रा निकालने वाले थे जो पैतालीस जिलों से होकर गुजारनी थी जिसकी बकायदा तैयारी भी हो चुकी थी, पोस्टर बैनर भी छप चुके थे। लेकिन अचानक गजब कर दिया शिवराज सिंह चौहान ने ,फिर क्या था सभी संत राज्यमंत्री बनकर माननीय हो गए।
इसे राजनीति का चमत्कार ही कहेंगे कि यही संत कह रहे थे नर्मदा के किनारे वृक्षारोपण में घोटाला हुआ है ,सरकार ने साढ़े छै करोड़ पौधे लगाने की बात कही थी वहीं ये संत गिनती करवाने की बात कह रहे थे। साथ ही खनन का मुद्दा भी था । लेकिन अब कोई मुद्दा नहीं रहा क्योंकि सरकार और संतों में डील हो गयी। इसके बदले में संतों को पीए, स्टाफ,वेतन,गाड़ी,मकान,सत्कार भत्ता जैसी तमाम सुविधाएं भी मिलेंगी। कांग्रेस का आरोप है कि शिवराज सरकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए धर्म के घोड़े पर सवार होकर वैतरणी पार करना चाहती है लेकिन वो अपने पापों को छुपा नहीं सकेंगे।
राजसत्ता का भी अजीब खेल है कि अगर आप भ्रष्टाचार में घिर रहे हैं या फिर सरकार की नाकामियों को छुपाना चाहते हैं तो सबसे सुलभ रास्ता है कि धर्म को बीच में ले आओ। लोग सरकार की नाकामियों और उसके भ्रष्टाचार को नजर अंदाज कर देंगे और सत्ता में बैठे लोग इस मौके का फायदा उठाकर दोबारा सत्ता के सिंघासन तक पहुंचने की जुगत में लग जाएंगे।पूरे देश में संत लगातार सत्ता से जुड़ रहे हैं। सत्ता का मार्गदर्शन करने वाले संत अब स्वयं सत्ता से दिशा निर्देश लेते नजर आ रहे हैं। भारत का पुरातन इतिहास इस बात का गवाह है कि संतों ने सत्ता से हमेशा दूरी बना के रखी। जब राजसत्ता मदान्ध होकर अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करने में विफल हो जाती थी या फिर शासक अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगता था तब जाकर संत उस मदान्ध राजसत्ता पर अंकुश लगाने का कार्य करते थे। 
  आज भी ऐसे तमाम संत हैं जो राजसत्ता से दूर ईश्वरीय साधना में लीन रहते हैं। वह अपने महान कार्यों से समाज ,देश और दुनियां के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं। जब व्यक्ति किसी मुसीबत में होता है तो संत की शरण लेता है। कहते हैं सच्चे संत के दर्शन मात्र से ही संकटों का निवारण हो जाता है।आधुनिक समय में कुछ ऐसे भी लोग संत स्वरूप धारण किये हुए हैं जिनका मात्र उद्देश्य भक्तों की भावनाओं से खेलकर अपनी स्वार्थपूर्ति करना है। कई संतों ने तो हजारों करोड़ का साम्राज्य स्थापित कर लिया है और कुछ ऐसे भी हैं जिन पर तमाम गंभीर आरोप हैं । विभिन्न अपराधों में तथाकथित संत जेल की सजा भी काट रहे हैं। समाज द्वारा संत हमेशा से पूजनीय रहे हैं लेकिन कुछ तथाकथित संतों ने इसी बात का फायदा उठाकर सत्ता और समाज से लाभ कमाने का कार्य किया।
  गौरतलब है कि कम्प्यूटर बाबा इंदौर दिगम्बर अखाड़े के महामंडलेश्वर है , जिनका असली नाम स्वामी नामदेव त्यागी है। लेपटॉप, मोबाइल जैसी तमाम आधुनिक सुविधाओं का उपयोग करने के कारण वह कम्प्यूटर बाबा के नाम से जाने जाते हैं। कम्प्यूटर बाबा का विवादों से हमेशा नाता रहा है। भय्यू जी महाराज राजनीतिक संत के तौर पर जाने जाते हैं वह पहले मॉडलिंग भी कर चुके है । वहीं योगेंद्र महंत कांग्रेस के लिए कार्य कर चुके है।

कंप्यूटर बाबा ने अब नर्मदा घोटाला यात्रा को रद्द कर दिया है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि राज्यमंत्री बनना और सरकारी सुविधाएं लेना बुरा नहीं है। सरकार ने नर्मदा संरक्षण के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है अब हम वृक्षारोपण,जलसंरक्षण पर कार्य करेंगे। वहीं शिवराज चौहान ने इस मामले पर कोई जबाबा नहीं दिया।
  जब व्यक्ति सांसारिक प्रपंचों को छोड़कर सन्यास धारण करता है तो उसका उद्देश्य होता है कि परोपकार और ईश्वरीय साधना के माध्यम से परमतत्व को प्राप्त करना। लेकिन हम भूल गए कि यह कलयुग है जहां सत्ता की प्राप्ति ही परम सत्य रह गया है। पहले जब राजसत्ता मदान्ध हो जाती थी तो धर्मगुरु ही उसको रास्ते पर लाने का कार्य करते थे लेकिन जब धर्म गुरु और संत ही सत्ता में शामिल होंगे तो सत्ता को पथभ्रष्ट होने से कौन रोकेगा। संत भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को निकले थे और सत्ता में शामिल हो अपने उद्देश्य की आहुति दे दी।



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