कानून का खेल, सलमान को बेल

आपने फ़िल्म दामिनी का डायलॉग तो सुना ही होगा जिसमें वकील बने अभिनेता सनी दयोल जज से कहते हैं कि " तारीख पर तारीख ,तारीख पर तारीख ,तारीख पर तारीख" मीलार्ड आम आदमी को न्याय नहीं मिलता है मिलती है तो केवल तारीख । ये तो फिल्मी डायलॉग है लेकिन असल जिंदगी में भी न्याय व्यवस्था की यही हकीकत है।
  काले हिरण शिकार मामले में दोषी करार दिये गए सलमान खान को 2 दिन की जेल के बाद 7अप्रैल को बेल मिल गयी। 5 अप्रैल को उन्हें जोधपुर सेशन कोर्ट में काले हिरण शिकार मामले में दोषी मानते हुए 5 वर्ष की सजा सुनाई थी। 25-25 हजार के दो निजी मुचलकों पर उन्हें जमानत दे दी गयी।
अब सवाल ये उठता है कि यह सुपरफास्ट न्याय व्यवस्था क्या आम आदमी को भी उपलब्ध हो सकती है। एक निर्दोष व्यक्ति को न्याय पाने के लिए उसका जीवन भी कम पड़ जाता है जबकि दोषी व्यक्ति अगर ऊंची रसूख वाला है तो न्यायिक प्रक्रिया अलग ढंग से काम करने लगती है। लंबी कानूनी प्रक्रिया भी सोची समझी साजिश की तरह चलाई जाती है जिसमें गुनहगार सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें नष्ट कर देता है, गवाहों को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर लिया जाता है या फिर उनको मार भी दिया जाता है।
बेल की सुनवाई से एक दिन पहले जज रविन्द्र कुमार जोशी का ट्रांसफर हो गया। लेकिन बेल पर सुनवाई उन्होंने की जब कि साधारण मामलों में ऐसा नहीं किया जाता है। न्यायिक व्यवस्था में अभी भी बहुत से ईमानदार न्यायाधीश है ,लेकिन कुछ न्यायाधीशों पर भी समय समय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं।
जजों की कमी भी न्याय मिलने में देरी का एक अहम कारण है। रसूखदार व्यक्ति अपने रसूख का इस्तेमाल कर न्यायिक प्रक्रिया को बंधक बना लेता है जहां पर न्याय उसके आगे अपना दम तोड़ देता है।
  मुझे लगता है कि स्टारडम के आगे न्याय भी बौना साबित हुआ है क्योंकि आम आदमी के मामले में शायद ही ऐसी कोई मिसाल हो जहां दो दिन पहले जेल और दो दिन बाद बेल मिल गयी हो। ये बात भी सही है कि सलमान को उनकी नेकी और दरियादिली के लिए जाना जाता है लेकिन वो काले हिरण शिकार में दोषी भी सिद्ध हुए हैं।कानून को समान रूप से कार्य करना चाहिए जिससे लोगों में कानून के प्रति दृढ़ विश्वास पैदा हो।

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