संत के चोले में शैतान

जोधपुर कोर्ट ने 25 अप्रैल 2018 को फैसला सुनाते हुए धर्मिक संत आसाराम बापू को नाबालिग के साथ हुए रेप का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
अदालत ने आशा राम और उनके दो सहयोगियों को दोषी मानते हुए आशाराम को आजीवन कारावास वहीं सहयोगियों शिल्पी और शरद को 20-20 वर्ष की सजा सुनाई है। आशाराम को पॉक्सो ,जुवेनाइल एक्ट एवं भारतीय दंड संहिता की तमाम धाराओं में दोषी मानते हुए कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

  सहारनपुर की रहने वाली लड़की के साथ 2013 में आशाराम द्वारा जबरन रेप किया गया था। पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र में पीड़ित लड़की ने 15 अगस्त 2013 की रात का वह भयावह मंजर बयाँ किया जब संत के चोले में एक भेड़िये ने उसकी अस्मिता को तार तार कर दिया।
पीड़ित लड़की मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा आश्रम में बारहवीं कक्षा की छात्रा थी। पीड़ित के अनुसार एक दिन उसे आश्रम में चक्कर आ गया। मेरी वार्डन ने मुझे बताया कि मेरे ऊपर भूत प्रेत का साया है। इस मामले में वह गुरु जी आशाराम बापू से बात करेगी। 7 अगस्त को वार्डन ने मेरे घर पर फोन किया और मेरे घरवालों को बताया कि आपकी बेटी की तबियत ठीक नहीं रहती है।
9 अगस्त को मेरे घरवाले मुझसे मिलने होस्टल आये जहां पर वार्डन ने उनको बताया कि आपकी बेटी पर भूत प्रेत का साया है और मैने इस मामले में गुरु जी से बात कर ली है। वार्डन शिल्पी ने घरवालों से कहा कि आशाराम ने जल्द लाने को कहा है।
  पीड़ित लड़की के पिता को पता चला कि आशाराम 12 अगस्त को दिल्ली में होंगे। 13 अगस्त को वह दिल्ली पहुंचे तो पता चला कि आश्रम जोधपुर पहुंच गए हैं। आशाराम के खास सेवादार ने 14 अगस्त को जोधपुर आने को कहा। माता पिता लड़की के साथ जोधपुर के मनाई गांव स्थित आश्रम में पहुंच जाते हैं। आशाराम ने बुलाया और अपनी कुटिया दिखाई इसके बाद प्रसाद दिया और अपने कमरे में जाने को कहा।
  15 अगस्त को आशाराम ने सत्संग के लिए बुलाया। पीड़िता के अनुसार आशाराम ने मेरे मम्मी पापा से बात की और उनसे कहा कि आप लोग गेट के बाहर जप करो। जप करने के बाद वो लोग वहां से जा सकते हैं। मुझे कुटिया के पीछे बने चबूतरे पर बिठा दिया गया। मुझे एक गिलास गर्म दूध पीने को दे दिया। पीछे के दरवाजे से मुझे अंदर बुला लिया। उसने अंदर की लाइट बंद कर दी और मुझसे कहा कि देखो बाहर कौन है , मैन बाहर देखा और बता दिया की बहार मेरी मम्मी बैठी हैं। उसने मेरे पास आकर मुझसे बात करनी शुरू की। आशाराम ने मेरे साथ अश्लील हरकत करनी शुरू कर दी। मैन चिल्लाना शुरू किया तो उसने मेरा मुंह बंद कर दिया और कहा कि अगर उसने कुछ कह तो उसके माता पिता को मरवा देगा। उसने पूरे एक घंटे तक उसकी इज्जत से खिलवाड़ किया।
लड़की की शिकायत पर इंदौर से आशाराम को गिरफ्तार किया गया। 1 सितंबर 2013 को पुलिस जोधपुर लेकर पहुंची। 4साल 7 महीने से आशाराम रेप मामले में बंद था जहां उसे न्यायाधीश मधु सूडान द्वारा उम्रकैद की सजा सुनाई गई।

  आशाराम का बचपन का नाम आशुमल था। आशुमल का जन्म 17 अप्रैल 1941 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बिरानी गांव में हुआ था। भारत पाकिस्तान के बंटवारे के समय आशाराम का परिवार भारत के अहमदाबाद गुजरात में आ गया था। 15 साल की उम्र में आशुमल घर छोड़कर आश्रम भाग गए जहां पर उनके पिता उन्हें वापस लाये और उनकी शादी जानकी देवी से कर दी। आशाराम के एक पुत्र है जिसका नाम नारायण साई और पुत्री का नाम भारती है।
  आशुमल ने लीलाशाह को अपना गुरु बनाया वहीं से आशुमल ,आशाराम बन गए। अहमदाबाद से दस किलोमीटर दूर साबरमती नदी के किनारे मूटेरा में पहली कुटिया बनाई।  लोगों को प्रवचन देना शुरू किया। लोगों को दवाई और मुफ्त भोजन देना शुरू किया जिससे आशाराम की ख्याति गुजरात से बाहर भी होने लगी। आसाराम ने अपना साम्राज्य बढ़ाना शुरू किया और आज लगभग 400 आश्रम स्थापित हैं। बताया जाता है कि आश्रम के 4 करोड़ अनुयायी है। विशेषज्ञों की माने तो आशाराम की चल अचल संपत्ति लगभग 10 हजार करोड़ की है।
  आशाराम का पुत्र नारायण साईं भी अपने पिता से एक कदम आगे है। उस पर भी कई युवतियों के यौन शोषण का आरोप है। वह इस समय सूरत की लाजपोर जेल में बंद है। उसकी पत्नी ने उस पर कई युवतियों से अवैध संबंध रखने का आरोप लगाया है।
  कहते है कि जैसी करनी वैसी भरनी शायद इस फैसले के बाद आशाराम पर पूरी तरह से लागू हो रही है। मूटेरा में दो बच्चों की हत्या का आरोप भी 2008 में लग चुका है जिसमें 2012 में अहमदाबाद कोर्ट ने 7 कर्मचारियों पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है। इसके अलावा आशाराम के अपराधों में जो भी रुकावट बना उसको उसने रास्ते से हटा दिया। आशाराम को जो भी लड़की पसंद आती उसे वह कोड वर्ड में जोगिन बोलता था और अपने खास सेवादारों के माध्यम से अपने पास बुलाता था जहां समर्पण के नाम पर वह युवतियों के साथ जघन्य अपराध को अंजाम देता था।
   जब पाप का घड़ा भर जाता है तो एक न एक दिन फूटता जरूर है। यही हुआ धवल वस्त्रों में छिपे भेड़िये के साथ ,जिसने अपनी विकृत मानसिकता से धार्मिक आस्था को बहुत बड़ी चोट पहुंचाई। भक्ति के नाम पर नाबालिग बेटियों ,महिलाओं की अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया जाता रहा लेकिन कुछ नहीं हुआ। आखिर में एक लड़की ने हिम्मत दिखाई और पाखंडी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने का कार्य किया।

  पाखंडियों ने उन संतों की इज्जत पर भी बट्टा लगा दिया है जिन्होंने अपनी तपस्या से समाज और देश का भला किया। अब लोग अच्छे संतों को भी शक की निगाह से देखने लगे हैं। दुखद पहलू यह है कि यौन शोषण के मामलों में तमाम तथाकथित संत जेल में बंद है। समाज के साथ छलावा करने वालों के लिए जेल नहीं मृत्युदंड निर्धारित हो जिससे कोई शैतान संत के वेश में मासूमों को अपनी विकृत मानसिकता का शिकार ना बना सके। राम रहीम, कौशलेंद्र प्रपन्नाचार्य फलाहारी,स्वामी नित्यानंद, स्वामी सदाचारी, स्वामी प्रेमानंद,भीमानंद उर्फ इच्छाधारी जैसे तमाम तथाकथित संतों पर रेप जैसे आरोप लगे हैं।
  प्राचीन सनातन धर्म की समृद्ध परंपरा को धवल वस्त्रों में छुपे शैतानों ने कलंकित करने का काम किया है। हम सबका कर्तव्य बन जाता है कि ऐसे बहरूपियो को पहचाने और समाज को जागरूक करें ताकि कोई धर्म का ठेकेदार हमारे धर्म और विश्वास को क्षति न पहुंच सके। लोग भी ऐसे ढोंगियों से बचें जो अपने को स्वयं ईश्वर का अवतार बताते हो और हमारे मन और आंखों पर अज्ञानता का पर्दा डालकर ज्ञान से दूर रखने का प्रयास कर रहे हों। ज्यादातर महिलाएं पाखंडियों के झांसे में जल्द आ जाती हैं ऐसे में जरूरी है कि अपने परिवार के साथ ही मिलें अगर जरूरी है तो। माता पिता से बड़ा कोई गुरु नहीं है अगर सेवा करनी है तो सबसे पहले अपने माता पिता की सेवा करें। माता पिता को कष्ट देकर ढोंगी गुरुओं की सेवा से कुछ हासिल नहीं होगा।
  कहते है कि पानी पियो छानकर और गुरु करो जानकर फिर कोई रोग नहीं लगेगा, कोई व्याधि नहीं आएगी। गुरु का मतलब होता है भारी यानि कि जो ज्ञान में भारी हो जो सद्गगुणों से परिपूर्ण हो। गुरु जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाये। भारत वर्ष में तमाम संत ऐसे हैं जो अपनी सकारात्मक ऊर्जा और दिव्यता से पूरे समाज और देश को आलोकित कर रहे हैं। जिनका दर्शन मात्र हमारे व्यसनों और दुर्गुणों को हरने वाला होता है ,हमें ऐसे संतों की आवश्यकता है जिनका ध्येय परोपकार ही है। ऐसे बनावटी संतों से दूर रहना होगा जिनका उद्देश्य केवल धनोपार्जन और विलासिता का जीवन जीना है।
सादर
राघवेंद्र दुबे

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