बेटियों से हैवानियत करने वाले दरिंदों को मिलेगी फांसी की सजा

 मासूम बच्चियों के साथ हो रही दरिंदगी से पूरे देश के लोगों में क्रोध, शर्मिंदगी के साथ ही भय का वातावरण है। शनिवार 21 अप्रैल 2018 को कैबिनेट की बैठक हुई जिसमें निर्णय लिया गया कि पोस्को एक्ट में संशोधन किया जाएगा जिसमें 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ रेप जैसी घिनौनी वारदात को अंजाम देने वाले को फांसी की सजा दी जाएगी ।पॉक्सो एक्ट में संशोधन के लिए जल्द अध्यादेश लाया जाएगा।
 
विभिन्न राज्यों में बच्चियों के साथ हो रही रेप की घटनाओं ने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी हमारी छवि को खराब किया है। राजस्थान की रहने वाली बच्ची को सूरत में बलात्कार के बाद मार दिया जाता है। बच्ची की मां को भी रेप के बाद मार दिया गया । मध्यप्रदेश के इंदौर में 8 महीने की मासूम को बलात्कार के बाद उसके मुंहबोले मामा ने मार दिया। उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद के लौनी इलाके में एक सौतेला पिता अपनी बारह वर्षीय बेटी का लगातार 2 महीने बलात्कार करता रहा जब मां को पता लगा तो एफआईआर दर्ज कराने के बाद रेल से कटने के लिए अपनी दोनों बेटियों के साथ रेल के आगे लेट गयी लेकिन कुछ लोगों ने उन्हें बचा लिया। जम्मू कश्मीर के कठुआ में आठ वर्ष की मासूम के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गयी। उन्नाव में एक लड़की को अपने साथ भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर द्वारा की गई दरिंदगी के खिलाफ न्याय पाने के लिए पूरे तंत्र से लड़ना पड़ा और उसके पिता को बेटी के लिए न्याय मांगने पर मौत की सजा मिली। बिहार के सासाराम, उत्तरप्रदेश,दिल्ली जैसे तमाम राज्यों में मासूमों को हैवानियत का शिकार होना पड़ रहा है।
मेरठ के छतरी गांव में दो दबंगों द्वारा एक मासूम का बलात्कार किया गया और जब वह गर्भवती हो गयी तो पंचायत ने बलात्कार की बोली लगा दी जिसमें 2 लाख रुपये नकद और 1 लाख रुपये अबोर्शन कराने पर। ये सोच है ।
  महिलाओं, बेटियों, बच्चियों पर हो रहे अपराध लगातार बढ़ रहे है लेकिन कानूनी खामियां दरिंदों को बचाने का काम करती है।
नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि बच्चियों पर लगातार जुर्म हो रहे हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से अपील की कि वह बलात्कार के आरोपी उन्नाव के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को तत्काल पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाएं। उन्होंने कहा कि देश में हर रोज 55 मासूम बेटियों से बलात्कार की घटनाएं घटित हो रही हैं जिनकी औसतन आयु पांच से साथ वर्ष है। ये आंकड़े हमें आईना दिखाने के लिए काफी हैं। लगातार मासूमों से हो रही हैवानियत हमारे समाज और हमारे देश का सिर शर्म से झुका रही हैं।
मुम्बई हाइकोर्ट के न्यायाधीश एससी धर्माधिकारी एवं न्यायाधीश भारती डोगरे ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि उन्नाव, कठुआ जैसे रेप के मामलों से विदेशों में भी भारत की इमेज प्रभावित हो रही है। वर्तमान हालात को देखते हुए शिक्षा और संस्कृति को साझा करने के लिए देश भारत से जुड़ नहीं रहे है। 
समाज आधुनिकता की दौड़ में अपने संस्कारों को भूल चुका है। अधिकांश रेप के मामलों में कोई नजदीकी रिश्तेदार, पड़ोसी या दोस्त ही ऐसी घटनाओं को अंजाम देता हैं। शायद हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं । मानसिक विकृति पाश्विकता को जन्म दे रही है। भ्रष्ट तंत्र की आड़ में मासूमों की चीखें दबकर रह जाती है। समाज को इन नर पिशाचों के सामने मुट्ठी बांधकर सीना तानकर खड़ा होना होगा ताकि कोई दरिंदा हमारी बेटियों को नजर उठाकर न देख सके। मुट्ठी भर गुनहगार पूरे समाज पर हावी हो रहे हैं। इन गुनहगारों को हम एकजुटता के साथ करारा जबाब दे सकते हैं। अक्सर लोग ये सोच कर चुप रहते हैं कि मैं क्यों ऐसे गुनहगारों का विरोध कर मुसीबत मोल लूं। लेकिन जब कोई घटना अपने साथ घटित होती है तो लोग दूसरों से मदद की गुहार करते है। आपराधिक प्रवृत्ति के लोग समाज में विघटन का फायदा उठाकर जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं। जब तक हमारा समाज अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठाएगा तब तक दरिंदे मासूमों की इज्जत से खिलवाड़ करते रहेंगे।
   कानून का लचीलापन होना, न्यायाधीशों की कमी होना, देश में पुलिस बल की कमी होना, संसाधनों की कमी, भ्रष्ट तंत्र हमारी न्याय की प्रणाली को कमजोर कर रहे है। कानून बनाना बड़ी बात नहीं है अगर कोई बड़ी बात है तो पारदर्शिता के साथ कानून को लागू करना। जिस दिन कानून का अनुपालन ईमानदारी से हो जाएगा उसी दिन से अपराधी अपराध करने से पहले सौ बार सोचेगा।


देश में हर रोज लगभग 107 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं।2015 में पूरे देश में महिला अपराध के 34651 मामले दर्ज हुए थे वहीं 2016 में 38947 मामले दर्ज हुए। मध्यप्रदेश महिला अपराधों में पहले नंबर पर है वहीं महाराष्ट्र दूसरे और उत्तरप्रदेश तीसरे नंबर पर है। 16 दिसम्बर 2012 में दिल्ली में हुए बीभत्स निर्भया रेप कांड के बाद पूरे देश में उबाल आ गया था ,लोग सड़कों पर उतर आए। इसके बाद रेप मामले में कई संशोधन भी किये गए लेकिन बलात्कार के मामले रुकने की बजाय बढ़े है। 2011 में दिल्ली में 572 मामले महिला अपराध के दर्ज हुए वहीं 2016 में उनकी संख्या 2155हो गयी।
 दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल 13 अप्रैल से लगातार राजघाट पर अनशन पर हैं।उन्होंने मांग की है कि बच्चियों के बलात्कारियों को 6 महीने के अंदर सुनवायी कर फांसी की सजा दी जाए। उसके बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा पेश किया। स्वाति मालीवाल लगातार 9 दिनों से अनशन पर हैं ।
दिल्ली पुलिस लगातार पिछले दस वर्षों से 66000 पुलिस कर्मियों की मांग केंद्र से कर रही है लेकिन अभी तक इस मांग पर कोई गौर नहीं किया गया है। पुलिस कर्मियों की कमी राजधानी दिल्ली को क्राइम कैपिटल बना रही है । यही कारण है कि यहां पर लगातार महिला अपराधों में बढ़ोत्तरी हो रही है।
फांसी के कानून का अध्यादेश जल्द लाया जाएगा जो कि बहुत जरूरी है जिससे अपराधियों में खौफ हो।  राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा जैसे तमाम राज्यों ने 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार में अपराधी को फांसी की सजा का प्रावधान किया है , इसके बावजूद भी बच्चियों के साथ लगातार हैवानियत हो रही है। संयुक्त अरब अमीरात,सऊदी अरब,इराक ,चीन जैसे तमाम देशों में बलात्कार की सज़ा मृत्युदंड है।
सबसे बड़ी चुनौती है कि दोषी को सजा मिल सके। किसी भी अपराध की जांच निष्पक्षता से हो जिससे अपराधी को फांसी के फंदे तक पहुंचाया जा सके। इसके लिए पारदर्शी व्यवस्था स्थापित करनी होगी। महिला अपराधों की सुनवाई के लिए अलग से फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट स्थापित करने होंगे जिससे मामले की जल्द सुनवाई हो सके। सबूत नष्ट न हों इसके लिए जगह जगह फोरेंसिक लैब स्थापित करनी होंगी।त्वरित सुनवायी के लिए न्यायाधीशों की ज्यादा  नियुक्ति की जाए।
समाज में जागरूकता के लिए अभियान चलाने की जरूरत है क्योंकि दरिंदगी करने वाले भी इसी समाज का हिस्सा हैं। जब किसी बेटी के साथ खुली सड़क पर दरिंदगी होती है तो यही समाज तमाशबीन बन जाता है और बाद में अफसोस जाहिर करता है। अगर हम उस समय उस बेटी के साथ खड़े हो जाते तो शायद उस बेटी की इज्जत बच जाती।लेकिन तब हम भीड़तंत्र का हिस्सा बन जाते हैं। ज्यादार मामलों में करीबी रिश्तेदार, दोस्त ही ऐसे जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं। विकृत मानसिकता के लोगों पर कोई रहम नहीं होना चाहिए ऐसे लोगों को जरूर फांसी की सजा मिलनी चाहिए। हमारे समाज को जाग्रत होने की आवश्यकता है। अत्याचार के बाद कैंडल मार्च निकालकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझने वाले लोगों को हकीकत में महिला हितों की रक्षा के लिए आगे आना होगा।


सादर
राघवेंद्र दुबे




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