दलित आंदोलन और हिंसा
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट में दी गयी गाइड लाइन के खिलाफ दलित संगठनों द्वारा आज 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद का आयोजन किया गया । देखते देखते भारत बंद के आंदोलन ने हिंसा का रूप ले लिया।प्रदर्शनकारियों ने गाड़ियों ,थानों,चौकियों में आग लगा दी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,राजस्थान,बिहार,छत्तीसगढ़, उड़ीसा,सहित देश के अन्य राज्यों में जमकर आगजनी हुई,ट्रैन रोकी गयीं,लोगों से मारपीट, पेट्रोल पंप पर लूट व तोड़फोड़ हुई। बिहार के वैशाली में एम्बुलेंस को रास्ता न मिलने से एक नवजात की मृत्यु हो गयी जो हमारी संवेदनहीनता की जीती जागती मिसाल है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एससी/ एसटी एक्ट के दुरुपयोग रोकने के लिए तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने की बात कही है,साथ ही प्रारंभिक जांच के बाद ही कार्यवाही करने एवं आरोपी को अग्रिम जमानत देने की बात कही है। इस बात को लेकर भारत बंद का आवाहन हुआ जिसमें जमकर अराजकता हुई। सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट के दुरुपयोग रोकने की बात की थी लेकिन हंगामा इस तरह शुरू हुआ मानों एक्ट को ही खत्म कर दिया गया हो। हिंसा करने वालों को लगता है जैसे सरकार की खुली छूट हो तभी तो केंद्र व राज्य सरकारों ने बंद के आवाहन के बावजूद एहतियात नहीं बरती जिसका नतीजा ये हुआ कि हिंसा में 8 लोग मारे गए और देश की तमाम संपत्ति को जलाकर खाक कर दिया गया। आप अपने अधिकारों के लिए लड़ें लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से । आप सभी को पता है कि किस तरह एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग निजी रंजिशों में किया गया,लोगों को प्रताड़ित किया गया अगर इसका दुरुपयोग रोका जाए तो इससे पीड़ितों को राहत मिलेगी। हिंसा के पीछे किसी सुनुयोजित साजिस से इनकार नहीं किया जा सकता है।जिस तरह भाजपा की केंद्र सरकार ने आनन फानन में ठीक भारत बंद के दिन सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन डाला उससे उनकी वोट बैंक की राजनीति की चिंता साफ झलकती है। कांग्रेस भी दलित प्रेम दिखाने में एक कदम आगे दिखी लेकिन कोई राजनैतिक पार्टी सवर्णों के हितों की रक्षा पर एक शब्द बोलने को तैयार नहीं दिखी । मेरा मानना है कि दलितों के हितों की रक्षा अवश्य हो लेकिन झूठे मामले में फ़सनेवाले सवर्णों की रक्षा भी हो। ये कैसा देश बनाया जा रहा है जहां जातियों में बटा देश एक दूसरे के खून का प्यासा हो रहा है। देश सभी का है , देश को जातियों , धर्मों में बांटकर इसे कमजोर न करें ।
सादर
राघवेंद्र दुबे
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