देश के एटीएम हुए कैशलेश, जनता फिर लाइन में
आपको 8 नवम्बर 2016 तो याद ही होगा जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 बजे रात को देश के राष्ट्रीय चैनल पर प्रकट होकर अचानक नोटबन्दी की घोषणा कर देते हैं। नोटबन्दी का कारण बताया गया कि काले धन को खत्म करने , आतंकवाद के खात्मे के लिए, भ्रष्टाचार को समाप्त करने लिए यह फैसला लिया गया।
आज हम बात कर रहे हैं कि पिछले कुछ दिनों से देश के कई राज्यों में नकदी का संकट पैदा हो गया है। लोग एटीएम की लाइन में लगे हुए हैं लेकिन उनसे रुपये नहीं निकल रहे हैं। लोग परेशान और हैरान हैं । एटीएम के आगे लगी लाइनें नोटबन्दी के दिनों की यादें ताजा कर रही हैं।
बिहार के लगभग 65 प्रतिशत एटीएम खाली हैं वहीं छत्तीसगढ़ के 90 प्रतिशत,मध्यप्रदेश के 50 प्रतिशत,महाराष्ट्र के 50 प्रतिशत, राजस्थान के 30 प्रतिशत, गुजरात ,पंजाब ,दिल्ली, तेलंगाना,कर्नाटक में भी एटीएम खाली पड़े हैं। लोगों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।
15 दिन पहले से ही बैंक नकदी मांग रहे थे लेकिन समय से ध्यान नहीं दिया गया। मंगलवार 17 अप्रैल 2018 को वित्त मंत्रालय की नींद खुलती है । वित्तमंत्री अरुण जेटली ट्वीट करते हैं कि नकदी की कमी अस्थायी है । आरबीआई ने लोजिस्टिक्स में आई दिक्कत को नकदी में कमी का प्रमुख कारण बताया। वहीं एक और कारण दिया गया कि मांग बढ़ने के कारण ये दिक्कत पेश आयी है।
ज्यादातर एटीएम से 2000 और 500 के नोट गायब हैं। जबकि एटीएम में 45 प्रतिशत नोट केवल 2000 के ही होते हैं। बताया जा रहा है कि 2000 के नोट जितने निकले जा रहे हैं उतने दोबारा सिस्टम में नहीं आ रहे हैं।नोटबन्दी से पहले 17.5लाख करोड़ नकदी चलन में थी और अब 18 लाख करोड़। अगर इतनी नकदी सिस्टम में चल रही है फिर ये संकट क्यों ?।
देश के 52 प्रतिशत लोग नकदी की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन सरकार जैसे तमाशबीन बनी बैठी हो। बैंकिंग सिस्टम जैसे पंगु बन गया हो और किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गयी हो। अब कहा जा रहा है कि 500 के नोट की छपाई 5 गुना बढा दी गयी है साथ ही 2000 के नोटों की छपाई भी तेजी से की जा रही है। जब पहले से ही सिस्टम में ज्यादा पैसा है तो फिर छपाई क्यों करनी पड़ रही है।
कर्नाटक में चुनाव चल रहा है और वहां के बेलगावी में 7 करोड़ के 2000 और 500 के नकली नोट पकड़े गए हैं। क्या सरकार बताएगी की नोटबन्दी से क्या हासिल हुआ ? सिर्फ बेरोजगारी और उद्योग धंधों के चौपट होने के। आतंकवाद की घटनाएं बढ़ी है, जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी बढ़ी है, नकली नोट छप रहे है। फर्क पड़ा तो उन गरीबों पर जो चंद रुपये निकलने के लिए लाइन में लगे रहे और अपनी जान तक गवां दी।
आरबीआई और सरकार ने आजतक नहीं बताया कि नोटबन्दी के दौरान कुल कितना पैसा जमा हुआ। भ्रष्ट लोगों का पैसा बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से काले से सफेद कर दिया गया। अगर कोई बीच में पिसा तो गरीब ,किसान ,मजदूर ।
एटीएम में कैश न होना कहीं यह नोटबन्दी का दूसरा एपिसोड तो नहीं है। जिनके यहां शादी है वो लोग परेशान हैं कि क्या करें क्या नहीं। कुछ समझ नहीं आ रहा है । बैंक भी नकदी का रोना रो रहे हैं और 1 लाख की जगह जरूरतमंदों को केवल 25 हजार ही पकड़ा रहे हैं। ऐसे में जरूरतमंद कहाँ जाएं।
सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि देश में बने नकदी के संकट को जल्द दूर करे। बैंकों की मांग के अनुरूप उन्हें नकदी उपलब्ध कराई जाए जिससे इस संकट को दूर किया जा सके। बैंकिंग व्यवस्था का ध्वस्तीकरण तो हो ही चुका है तभी तो विजय माल्या,नीरव मोदी,मेहुल चौकसी जैसे लोग देश का हजारों करोड़ लेकर विदेश भाग जाते है और चौकीदारी करने वाले तमाशबीन बने रह जाते हैं। आखिर में कीमत तो देश की जनता को ही चुकानी पड़ती है।
सादर
राघवेंद्र दुबे
राघवेंद्र दुबे
अच्छा लिखा
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